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भद्रबाहुसंहिता
जनपद ने लिए व्याधि और भय समझना चाहिए ॥1811
रक्ते 'पुनभयं विन्द्यात् नीले अंष्ठिभयं तथा।
अन्येष्वेषु विचित्रेषु वृक्षेषु तु भयं विदुः ।।।9।। यदि लाल रंग का रस निकले तो पुत्र यो भय, नौल रंग का रस निकले तो गठों को भय, और अन्य विविध प्रकार का रस निकले तो जनपद को भय होता है ।।।9।।
विस्वर रवमानस्तु चैत्यवृक्षो 'यदा पतेत् ।
सततं भयमाख्याति देशजं पञ्चमासिकम् ॥2011 या य वक्ष- संल्यालय के समक्ष स्थित वृष्टा अथवा गल्लर का वृक्ष विकृत आवाज करता हुआ गिरे तो देश-निवासियों नोगत्र मामिक-पार महीनों के लिए भय होता है ।20।।
नानावस्त्रैः समाच्छन्ना दृश्यन्ते चैव यद् द्रमाः ।
राष्ट्र तद्भय विन्द्या विशेषेण तदा विषे ।।2।। यदि नाना प्रकार ने वरमो मे युक्त वृक्ष दिग्यलाई पढ़ें तो राष्ट्र के निवासियों को भय होता है तथा विशा कप से देश के लिए भय समझना चाहिए 1121||
शुक्लवस्त्रो हिजान् हन्ति रक्तः क्षत्रं तदाश्रयम् ।
पीतवस्त्रो यदा न्याधि तदा च वैश्यघातकः ॥22॥ यदि वन मनन यम्ब ग युक्न दिपलाई पड़े तो ब्राह्मणों का विनाश, रक्त वस्त्र से युक्त दिग्बला गड़े नो क्षत्रियों का विनाश और पीत नात्र से युक्त दिखलाई पड़े तो व्याधि उत्पन्न होती है और बंशया के लिए बिना गफ है ।।22।।
'नीलवरस्तथा श्रेणीन कपिलम्लेंच्छमण्डलम् ।
धूम्रनिहन्ति श्वपचान् चाण्डालानग्यसंशयम् ॥23॥ नील वर्ण र सम्व में गुका वृक्ष दिखलाई पड़े तो अश्रेणी-शूद्रादि निम्न वर्ग के व्यक्तियों का विनाश, कपिल वर्णन वान रों युवत दिखलाई पड़े तो म्लेच्छ-- पवनादिया विनाण, घ वर्ण के वस्त्र में युगात विम्बलाई गड़े तो भबपन-चाण्डाल डोमादि का विनाश होता है ॥? 311
1. शत्र ग.. | 2 पक्षे न. 3. विदुः । 4. मन: म० । 5.2 गयं समास्यानि म. । 6. या द ने मा. म. । 7. गोलबम्वो निहन्या शूद्रांच प्रभनिन्नरान् । पशाशिमयं चित्र निधणं: रवा भयंकर म. 1