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मायासंहिता
इष्टग्राम के नक्षत्र को उपर्युक्त चक्र में देखना चाहिए कि वह किस नाड़ी का है।। यदि ग्राम-नक्षत्र की सौम्या नाड़ी---आर्द्रा, हस्त, पूर्वापाड़ा और पूर्वाभाद्रपद हो
और उस पर चन्द्रमा शुक्र के साथ हो अथवा प्राम-नक्षत्र, चन्द्रमा और शुक्र ये तीनों मौम्या नाड़ी के हों तथा उस पर पापग्रह की दृष्टि या संयोग नहीं हो तो अच्छी वर्षा होती है । 'पापयोग दृष्टि वाधक होती है । इस विचार के अनुसार चण्डा,समीरा और दहना नाड़ियाँ अशुभ हैं, शेष सौम्या, नीरा, जला और अमृता शुभ हैं। ___चक का विशेष फल · चण्डा नाही में दो-तीन से अधिक स्थित हुए ग्रह प्रचण्ड हवा चलाते हैं। समीरा नाट्री में स्थित होने पर वायु और दहना नाड़ी पर स्थित होने से ऊष्मा पैदा करते हैं । सौम्या नाड़ी में स्थित होने से समता करते हैं। नीरा नाड़ी में स्थित होने पर मेघों का संचय करते हैं, जला नाड़ी में प्रविष्ट होने से वर्षा करते हैं तथा वे ही दो-तीन में अधिक एकत्रित ग्रह अमृता नाड़ी में स्थित होने पर अतिवृष्टि करते हैं । अपनी नाड़ी में स्थित हुआ एक भी ग्रह उस नाड़ी का फल दे देता है। किन्तु मंगल राभी नाड़ियों में स्थित नाड़ी के अनुसार ही फल देता है । ग्रहों गुरु, मंगल और सूर्य के योग से धुआँ, स्त्री---चन्द्रमा और शुत्र और ग्रहों के योग ग वर्मा तथा केवल स्त्री ग्रहों के योग से छाया होती है, जिस नाड़ी में कर और सौभ्यग्रह मिले हुए स्थित हों उसमें जिरा दिन चन्द्रमा का गमन हो, उग दिन अली वर्षा होती है । यदि एक नक्षत्र में ग्रहों का योग हो तो उस कान में महावष्टि होती है । जब चन्द्रमा पिग्रहों से या केवल सौम्यग्रहों से विद्ध हो तव साधारण वर्गाहोती है तथा फसल भी साधारण ही होती है।
चन्द्रमा जिग ग्रह की नाड़ी में स्थित हो, उस ग्रह से यदि यह मुक्त हो जाये तथा क्षीण न दिग्वनाई देता हो तो वह अवश्य वर्मा करता है । तात्पर्य यह है कि शुक्ल पक्ष की पाली रो गृष्ण पक्ष की दशमी तक का चन्द्रमा जिस नाड़ी में हो और नाडी का स्वामी चन्द्रमा क गाथ धैठा हो या आदेता हो तो वह अवश्य वर्षा करता है। चन्द्रमा मौम्प एवं कर ग्रहों के गाय यदि अमृत नाड़ी में हो तो एक, तीन या सात दिन में दो, मात्र या मात बार वर्षा होती है। इसी प्रकार चन्द्रमा ऋ र और सौम्य ग्रहों ग युक्त हो और जला नाड़ी में स्थित हो तो इस योग से आधा दिन, एक पहर या तीन दिन तक वर्ग होती है । यदि सभी ग्रह अमृता नाड़ी में स्थित हों तो 18 दिन, जला नाड़ी में हो तो 12 दिन और नीरानाड़ी में हों तो 6 दिन तक वर्षा होती है। मध्य नाड़ी में गये हा सभी ग्रह तीन दिन तक वर्षा करते है । शेग नाड़ियों में गग हुए सभी ग्रह महावायु और दुष्ट वृष्टि करते हैं । अधिक शरग्रहों के भोग में निर्जला नाड़ियां भी जलदायिनी तथा क र ग्रहों के भोग से भाजल नादियाँ भी निर्जला बन जाती हैं । दक्षिण की तीनों नाड़ियों में गये हुए ग्रह अनावृष्टि की सचना दन हैं । और ये ही क्रूर ग्रह शुभ-ग्रहों से युक्त हों और