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भद्रबाहुसंहिता
जब किमी निमित्त कार्य के लिए राजा प्रयाण करने वाली सेना से लौट .. करके जाए तो शत्रु राजा के द्वारा यह गुद्ध में मारा जाता है ।।880
यदा राज्ञः प्रयातस्य रथश्च पथि भज्यते।
भग्नानि चोपकरणानि तस्य राज्ञो वधं दिशेत् ॥8॥ जव यात्रा करने वाले राजा का रथ भार्ग में भग्न हो जाये तथा उस राजा के क्षत्र, चमर आदि उपकरण भग्न हो जाये तो उसका वध समझना चाहिए ।।89।।
प्रयाणे पुरुषा वाऽपि यदि नश्यन्ति सर्वशः ।
सेनाया बहुशश्चापि हता देवेन सर्वशः ।।901 यदि प्रत्यान में - यात्रा में अनेक व्यक्तियों की मृत्यु हो तो भाग्यवश सेना में भी अनेक प्रकार की हानि होती है ।। 9011
यदा राज्ञः प्रयातस्य दानं न कुरुते जनः ।
हिरण्यव्यवहारेषु साऽपि यात्रा न सिध्यति॥9॥ यदि प्रयाण मारने वाले राजा क व्यक्ति प्रयाण काल में स्वर्णादिक दान न करें तो यात्रा सफल नहीं होती है ।1911।
प्रवरं घातयेत् भत्यं प्रयाणे यस्य पार्थिवः।
अभिषिञ्चेत् सुतं चापि चमस्तस्यापि बध्यते ॥92।। प्रयाणकाल में जिस राभा के प्रधान भृत्य गा घात हो और नृप उसके पुत्र को अभिषिक्त करे तो उसकी गना का वध होता है ।।92।।
विपरीतं यदा कुर्यात सर्वकार्य महर्म हुः ।
तदा तेन परिवत्ता सा सेना परिवर्तते ।।931 यदि प्रयाण काल में नृप बार-बार विपरीत कार्य करे तो सेना उसरो परित्रस्त होकर लौट आती है ।।93।।
परिवर्तेद् यदा वात: सेनाभध्ये बदा-यदा।
तदा तेन परिवस्ता सा सेना परिवर्तते ॥9411 रोना में जब वायु बार-बार सेना को अभिघातित और परिवर्तित करे तो सेना उसके द्वारा त्रस्त होकर लौट गती है ॥941।
1. यमामं चौपारण में । 2. शिध्यने भ० । 3. यदि [.|