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एकादशोऽध्यायः
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सर्वास्वपि यदा दिक्षु गन्धर्वनगर भवेत् ।
सर्वे वर्णा विरुध्यन्ते सर्वदिक्षु परस्परम् ॥8॥ यदि सभी दिशाओं में गन्धर्वनगर हो तो सभी दिशाओं में सभी वर्ण वाले परस्पर विरोध करते हैं - कलह करते हैं 118।।
कपिलं सस्यघाताय मांजिष्ठं हरिण भगवाम् ।
अव्यक्तवर्ण कुरुते बलक्षोभं न संशयः ॥५॥ कलि वर्ण का गन्धर्वनगर धान्य द्योतना, मस्जिाल वर्ण का गन्धर्वनगर हरिण, गौ आदि पशुओं का पातक और अव्यक्त वर्ण का गन्धर्वनगर मेना में क्षोभ उत्पन्न करता है।।9।'
गन्धर्वनगर स्निग्धं सप्राकारं सलोरणम ।
शान्तदिशि समाश्रित्य राजस्तद् विजयं वदेत् ॥10॥ यदि स्निग्ध, परकोटा और तोरण सहित गन्धर्वनगर नीरव दिशा में दिखलाई पड़े तो राजा के लिए विजय देने वाला होता है ।। ||
गन्धर्वनगरं व्योम्नि परुषं यदि दृश्यते । - वाताशनिनिपातांस्तु तत् करोति सुदारुणम ॥11॥ यदि आकाश में परुप-~-कठोर गन्धर्वनगर दिखलाई पड़े तो वायु के चलने और बिजली के गिरने का महान भय होता है ।।11।।
इन्द्रायुधसवर्णं च धूमाग्निसदृशं च यत् ।
तदाग्निभयमाख्याति गन्धर्वनगरं नणाम ।।12।। पदि इन्द्रधनुष के समान वर्णमाला और धूमयुक्त अग्नि के भापान गन्धर्व नगर दिखलाई पड़े तो मनुष्यों को अग्नि-भय हो । है ।।। 2।।
खण्डं विशीर्ण 'सच्छिद्रं गन्धर्वनगरं यदा।
तदा तस्करसंघानां भयं सजायते सदा ॥13॥ यदि खण्डित,
विखलित और छिद्रयुक्त गन्धर्थनगर दिखलाई पड़े तो पृथ्वी पर चोरों का भय होता है ।।13।।।
यदा गन्धर्वनगरं सप्राकारं सतोरणम् । दृश्यते तस्करान् हन्ति तदा चानूपवासिनः ।।14।।
___ 1. गया मु० । 2. समन्ननः म । 3. करम म । 4. छिद्र धा मु. । 5. स गया जायते भूवि मु. 1 6. बान्तबाशितः पुस ।