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भद्रबाहुसंहिता
पूर्वसूरे यदा घोरं गन्धर्वनगरं भवेत ।
नागराणां वधं विन्द्यात तदा घोरमसंशरयम् ॥21॥ यदि सूर्योदय काल में पूर्व दिशा में गन्धर्व नगर दिखलाई दे तो नागरिकों का वध होता है, इसमें मन्देह नहीं है ॥2॥
अस्तमायाति दीप्तांशो गन्धर्वनगरं भवेत् ।
यायिनां च तु भयं विन्द्याद् तदा घोरमुपस्थितम् ॥3॥ यदि मुर्य के अस्तकाल में गन्धर्व नगर दिग्वलाई दे तो यायी . आक्रमणकारी के लिए घोर भय की उपस्थिति गुचित करता है ।।311
रक्तं गन्धर्वनगरं दिशं दीप्तां यदा "भवेत् ।
शस्त्रोत्पातं तदा विन्द्याद् दारुणं समुपस्थितम् ॥4॥ यदि रक्त गन्धर्वनगर पूर्व दिशा में दिखलाई पड़े तो शस्त्रोत्पात -मारकाट का भय समझना चाहिए 11411
पीतं गन्धर्वनगर दिशं दीप्तां यदा भवेत् ।
व्याधि तदा विजानीयात् प्राणिनां मृत्युसन्निभम् ॥5॥ यदि गीत–पीला गन्धर्वनगर दिखलाई पड़े तो प्राणियों के लिए मृत्यु के तुल्य कष्टदायका व्याधि उत्पन्न होती है 115।।
कृष्णं गन्धर्वनगरमपरा' दिशिमासतम् ।
बधं तदा विजानीयाद भयं वा शूद्रयोनिजम् ।।6।। यदि कृष्ण वर्ण-काले रंग का गन्धर्व नगर पश्चिम दिशा में दिखलाई पड़े तो वध ----मार-बाट ग उत्पन्न बध होता है तथा शुद्रों के लिए भयोत्पादक है।16।
श्वेतं गन्धर्वनगर दिशं सौम्यां यदा भशम् ।
रातो विजयमाख्याति "नगरश्त धनान्वितम ॥7॥ यदि श्येत गन्धर्वनगर उत्तर दिशा में दिखलाई पड़े तो राजा की विजय होती है और नगर धन-धान्य मे परिपूर्ण होता है ।।१।
1. अस्ते गाते प्रथाऽदिये म । 2. दा म । 3. यधं म। 4. भशम् मु। 5. याम्यां मु। 6. भम् मु. । 7. अपस्या म8. मतं दिन मु० । 9. वर्ष म. A. B. D. I 10. गम्य मुल; मगरं म C.I