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दशमोऽध्यायः
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वर्षा अधिक मनोरम होती है । चैत्र शुक्लपक्ष में आकाश में बादलों का छाया रहना शुभ समझा जाता है। यदि दैत्र शुक्ला पंचमी को रोहिणी नक्षत्र हो और इस दिन बादल आकाश में दिखलाई पड़ें तो निपचय से आमामी वर्ष अच्छी वर्षा होती है । सुभिक्ष रहता है तथा प्रशा में सुख-शान्ति रहती है। सूर्य जिस समय या जिस दिन आदी में प्रवेश करता है, उस समय था उस दिन के अनुसार भी वर्षा और सुभिक्ष का फल ज्ञात किया जाता है। आचार्य मेघ महोदय गार्ग ने लिखा है कि सूर्य रविवार के दिन आ नक्षत्र में प्रवेश करे तो वर्षा का अभाव या अल्पवृष्टि, देश में उपद्रव, पशुओं का नाश, फसल की कमी, अन्न का भाव महँगा एवं देश में उपद्रव आदि फल घटित होता हैं। सोमवार को आर्द्रा में रवि का प्रवेश हो तो समयानुकल यथेष्ट वर्षा, मभिश्न, शान्ति, परस्पर मेल-मिलाप की वृद्धि, सहयोग का विकास, देश को उन्नति, व्यापारियों को लाभ, तिलहन में विशेष लाभ, बस्त्र-व्यापार का विकाम एवं घत मस्सा होता है । मगलवार को आर्द्रा में रविना प्रवेश हो तो देश में धन की हानि, अग्निभय, कलह-विसंवादों की वृद्धि, जनता में परस्पर संघर्ष, चोर-गुटेरों की उन्नति, साधारण वर्मा, फसल में कमी और वन एवं खनिज पदार्थों की उत्पत्ति में कमी होती है। बुधवार को आर्दी में सूर्य का प्रवेश हो तो प्रच्छी वां, सुभिक्ष, धान्य भाव सरसा, रस भाव महंगा, खनिज पदार्थों की उत्पत्ति अधिक, मोती-माणिक्य की उत्पत्ति में वृद्धि, घृत की कमी, पशुओं में रोग और देश का आधिक विकास होता है । गुरुवार के दिन आर्द्रा में सूर्य का प्रवेश हो तो अच्छी वर्मा, मुभिक्ष, अर्थ बुद्धि, देश में उपद्रव, महामारियों का प्रकोप, गुड़-गहूं का भाव महेंगा तथा अन्य प्रकार अनाजों का भाव सस्ता; शुक्रवार में प्रवेश हो तो जाति में अच्छी वर्मा, पर माघ में वर्षा का अभाव तथा कात्तिक में भी पापा की नमी रहनी । दमक अतिरिक्सा पाराल में साधारणत: रोग, पशुओं में व्याधि और अग्निभय गवं शनिवार को प्रवेश हो तो दुष्काल, वर्षाभाव या अल्पवृष्टि, असमय पर अधिक वाई, अनावृष्टि के कारण जनता में अशान्ति, अनेक प्रकार के रोगी की वद्धि, धान्य का अभाव और व्यापार में भी हानि होती है । वर्षा का रिज्ञान रवि का आर्द्रा में प्रवेश होने पर किया जा सकेगा। पर इस बात का ध्यान रखना होगा कि प्रदेश के समय चन्द्र नक्षत्र कौन-सा है ? यदि चन्द्र नक्षत्र मृदु और जालसंज्ञान हो तो निश्चयतः अच्छी वर्षा होती है। उम्र तथा अग्नि संज्ञक नक्षत्रों में गरल की बर्षा नहीं होती। प्रातःकाल आर्द्रा में प्रवेश होने पर सुभिक्ष और माधारण धपा, मध्यान्न काल में प्रवेश होने पर चातुर्मास के प्रारम्भ में वर्षा, मध्य में कमी और अन्त में अल्पवृष्टि एवं सन्ध्या समय प्रवेश होने पर अतिवृष्टि या अनावृष्टि का योग्य रहता है । रात्रि में जब सूर्य आर्द्रा में प्रवेग करता है, तो उस अप यषां जन्छी होती है, किन्तु फसल साधारण ही रहती है । अन्न का माय निरन्तर ऊंच-नीची होता रहता है। सबस