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भद्रबाहुसहिता
अट्ठाईस नक्षत्रों को क्रम से स्थापित करना चाहिए । इनमें दो-दो शृग में, एकएक नक्षत्र सन्धि में. और एक-ए। तर में स्थापित करें। यदि उक्त क्रम से . रोहिणी समुद्र में पड़े तो अधिक वपा, शृग में पड़े तो थोड़ी वर्षा, सन्धि में पड़े तो वर्थाभाव और तट में पड़े तो अच्छी वर्षा होती है। यदि रोहिणी नक्षत्र सन्धि में हो तो वैश्य के घर, पर्वत पर हो तो कुम्हार के घर, सिन्धु में हो तो माली के घर और तट में हो तो धोबी के धर रोहिणी का वास समझना चाहिए। रोहिणी चक्र में अश्विनी नक्षत्र के स्थान पर मेष सूयं संक्रान्ति का नक्षत्र रखना होगा।
रोहिणी-चक्र
सरा भाद्रपद मान्धी
|
सन्धि रोहिणी -
(भादर
तर ।
मिन्य
अशिनी
आदर्श
कृत्तिका
भरणी
मृगशिर
गतभिषा मन्धि
सन्धि
धान तथा
»
नट
पुनसु
सिन्धु
अभिजित
आरलेपन
श्रवण
!
मघा तट
उत्तरापानात मादी सन्धि
सिन्धु स्वाती
सन्धि पूर्वाफामानी
विशा
सन्धि दस्त /
... मान्यता
(वर्ष का विचार एवं अन्य फलादेश - यदि माघ मास में मम आनछादित रहें और चैत्र में आकाश निर्मल रहे तो पृथ्वी में धान्य अधिक उत्पन्न हों और