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भद्रबाहुसंहिता
महान भय का सूचक जानना चाहिए अथवा इस प्रकार का वायु अतिवृष्टि का। सूचक होता है ।1410
पूर्वसन्ध्यां यदा 'वायुरपसव्यं प्रवर्तते।
पुरावरोधं कुरुते यायिनां तु जयावहः ॥42॥ यदि वायु अपसव्य मार्ग से पूर्व सन्ध्या ' को वातान्वित करता है तो वह पुर के अवरोध का धेरे में पड़ जाने का सूचक है । इस समय यायियों-आक्रमणकारियों की विजय होती है ।। 4211
पूर्वसन्ध्यां यदा वायुः सम्प्रवाति प्रदक्षिणः ।
नागराणां जयं कुर्याद् सुभिक्षं याधिविद्रवम् ॥43॥ यदि वह वायु प्रदक्षिणा करता हुआ पूर्वसन्ध्या को व्याप्त करे तो उससे नागरिकों ६. काय होती है, सुभिक्ष झेता है और पढ़कर आनेवाले आक्रमणकारियों को लेने के देने गड़ जाते हैं अर्थात् उन्हें भागना पड़ता है ।।431
मध्याह्न वार्धरावे दार तथा वाऽस्तमनोदये।
वायुस्तूर्णं यदा वाति तदाऽवृष्टि भयं राजाम् ॥4॥ यदि वायु मध्याह्न में, अर्धरात्रि में तथा सूर्य के अस्त और उदय के समय शीघ्र गति से चले तो अनावृष्टि, 'भय और रोग उत्पन्न होते हैं ।।44॥
यदा राज्ञः प्रयातस्य प्रतिलोमोऽनिलो भवेत।
अपसव्यो “समार्गस्थस्तदा सेनावध' विदुः ।।45॥ यदि राजा के प्रयाण के समय वायु प्रतिलोम - विपरीत बहे अर्थात् उस दिशा को न चलकर जिधर प्रयाण किया जा रहा है, उससे विपरीत जिधर से प्रयाण हो रहा है, चले तो उसगे आक्रमणकारी की सेना का वध समझना चाहिए 11451
अनुलोमो यदा स्निग्धः सम्प्रवाति प्रदक्षिणः । नागराणां जयं कुर्यात सुभिक्षं च प्रदीपयेत् ।।46।।
1. परसन्ध्या द्रवात् पुर: मु. A., नयाभ्यासात् पम् . B परगत प्रवास्यते म् ) 2. भयं मु.D | 3. विधाम म. A. | 4. च गु. 5. रुजा मा । 6. समार्गस्य म० । विमार्गस्थो म C.I7. भई ग. A. ॥ 8. प्रदीपतश्च चार्थशब्दश्च तदा मित्र जयावहः मु. ।