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भद्रबाहुसंहिता
आषाढ़ी पूर्णिमा को यदि पूर्व और पश्चिम के बीच – अग्निकोण का वायू चले तो प्रशासक अथवा राजा की मृत्यु होती है । शस्य तथा जल की स्थिति चित्र-विचित्र होती है ॥ 8 ॥
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क्वचिन्निष्पद्यते सस्यं क्वचिच्चिापि विपद्यते । धान्यार्थो मध्यमो ज्ञेयः तदाऽग्नेश्च भयं नृणाम् ॥19॥ धान्य की उत्पत्ति कहीं होती है और कहीं उस पर आपत्ति आ जाती है । मनुष्य को धान्य का लाभ मध्यम होता है और अग्निभय बना रहता है ||9|| आषाढीपूर्णिमायां तु वायुः स्याद् दक्षिणापरः । सस्यानामुपघाताय चांराणां तु विवृद्धये ॥20॥
आषाढ़ी पूर्णिमा को यदि दक्षिण और पश्चिम के बीच की दिशा अर्थात् नैर्ऋत्य कोण का वायु चले तो वह धान्यघातक और चोरों की वृद्धिकारक होती € 11201
भस्मपांशुरजस्कीर्णा यदा" भर्वात मेदिनी ।
सर्वत्यागं तदा कृत्वा कर्त्तव्यो धान्यसंग्रहः ॥21॥
उस समय पृथ्वी भस्म, धूलि एवं रजकण से व्याप्त हो जाती है - अनावृष्टि के कारण पृथ्वी भूलि-मिट्टी से व्याप्त हो जाती है। अतः समस्त वस्तुओ को त्याग कर धान्य का संग्रह करना चाहिए 12
विद्रवन्ति च राष्ट्राणि क्षीयन्ते नगराणि च । श्वेता स्थिर्मेदिनी ज्ञेया मांसशोणितकर्दमा ||22||
उक्त प्रकार की वायु चलन में राष्ट्रों में उपद्रव पैदा होते हैं और नगरों का क्षय होता है । पृथ्वी श्वेत हड्डियों में भर जाती है और मांस तथा खून की कीचड़ से सराबोर हो जाती है ॥22॥
आषाढीपूर्णिमायां तु वायुः स्यादुत्तरापरः । मक्षिका' दंशमशका जायन्ते प्रबलास्तदा ||23|| मध्यमं क्वचिदुत्कृष्टं वर्ष सस्यं च जायते । नूनं च मध्यमं किचिद् धान्यार्थ तव निर्दिशेत् ॥ 241
आषाढ़ी पूर्णिमा को यदि बायु उत्तर और पश्चिम के बीच के कोण
1. भवत् । 2. रास्यः A 34 काण्डम् गु० । 5-6. नान्न संशय: मु० C ऽञ्चौराणां समूपद्रवम् गुरु C