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नबमोऽध्यायः
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आषाढीपूर्णिमायां तु पश्चिमो यदि मारुतः।
मध्यमं वर्षणं सस्यं धान्यार्थो मध्यमस्तथा ॥14॥ आषाढ़ी पूर्णिमा को यदि पश्चिम वायु चले तो मध्यम प्रकार की वर्षा होती है । तृण और अन्न का मूल्य भी मध्यम---न अधिक मंहगा और न अधिक सस्ता रहता है ।।।4।।
उद्विजन्ति च राजानो वैराणि च प्रकुर्वते।
परस्परोपघाताय- स्वराष्ट्रपरराष्ट्रयोः ।।15।। उक्त प्रकार की वायु के चलने से राजा लोग उद्विग्न हो उठत हैं और अपने तथा दूसरों के राष्ट्रों को परम्पर में घात करने के लिए वैर-भाव धारण करने लगते हैं । तात्पर्य यह है कि आपाढ़ी पूर्णिमा को पश्चिम दिशा को बायु चले तो देश और राष्ट्र में उपद्रव होता है। प्रशासन और नेताओं में मतभेद बढ़ता है ।।।5।।
आषाढीपूर्णिमायां तु वायुः स्यादुत्तरो यदि ।
वापयेत् सर्वबीजानि सस्यं ज्येष्ठ समद्ध यति ॥16॥ आषाढी पूर्णिमा को उत्तर दिशा की वायु चले तो सभी प्रकार के बीजों को बा देना चाहिए। क्योंकि उमेत प्रकार के वायु में बोये गये वीज बहुतायत से उत्पन्न होते हैं ।। 1 611
क्षेमं सुभिक्षमारोग्यं प्रशान्ता: पाथिवास्तथा।
बहूदकास्तदा मेधा महो' धर्मोत्सवाकुला॥17॥ उक्त प्रकार की वायु क्षेम, कुशल, आरोग्य की वृद्धि का गुचा है, राजाप्रशासक परस्पर में शान्ति और प्रेम में निवास करते हैं, प्रजा के साथ प्रशाराकों का व्यवहार उत्तम होता है। मेध बहुत जान बरसात है और पृथ्वी धर्मत्सित्रों से युक्त हो जाती है ।। 170
आषाढीपूणिमायां तु वायुः स्यात् पूर्वदक्षिणः । "राजमृत्यु"विजानीयाच्चित्रं सस्यं तथा जलम् ।।18।।
1. उग-छन्त म..BD.। 2-3. Tथा Tili E A. तथा गजोम. 13. यथा राजा मु. D. 14 :ri HC प्रवासि ग..) । 5. न ये गथानीय A. 6. शाम | 7. यसोश.. A | 8. का मू. C । 9. महाम.. A. D. का भु० C.। 10 राज्ञा गु., ALL. गु . !