________________
32
भद्रबाहुसंहिता
जिग मार्ग, वृद्धि, द्वार, आगमन प्रकार और विकार के अनुसार शुभाशुभ रूप उल्कापात हो उगी के समान शभाशुभ फन अवगत करना चाहिए ।।66।।
तिथिश्च करणं चैव नक्षत्राश्च मुहूर्तत: ।
ग्रहाश्च शकुन बैल विशो वर्मा: इमामत17!! उस्तापात का शुभाशुभ फल तिथि, करण, क्षय, मुहर्त, ग्रह, शकुन, दिशा, वर्ण, प्रमाण - लम्बाई-चौड़ाई पर रा बतलाना चाहिए ।।6711
निमित्तादनुपूर्वाच्च पुरुष: कालतो बलात् ।
प्रभावाच्च गतेश्चैवमुल्काया फलमादित् ।।68।। निमित्तानुगार क्रापूर्व उपर्युक्त प्रकार से निरूपित काल, बल. प्रभाव और गति पर से उल्का फल नो भवगन करना चाहिए ।।6।।
एतावदुक्तमुल्कानां लक्षणं जिनभाषितम् ।
परिवेषान् प्रवक्ष्यामि तान्निबोधत तत्वतः ॥6॥ जिम प्रकार जिनेन्द्र भगवान् ने उल्कानों का लक्षण और गल निरूपित किया है, उमी प्रकार यहाँ वणित किया गया है। अब परिवेश के सम्बन्ध में वर्णन किया जाता है, उसे यथार्थ रूप से अवगत करना चाहिए ।।6911
__ इति भद्रबाहुसंहितायां भद्रबाहुनि मित्तशास्त्रे) तृतीयोऽध्यायः ।
विवेचार -.-उल्लात का जनादेश संहिता ग्रन्थों में विस्तारपूर्वक वणित है। यहाँ सर्वसाधारण की जानकारी लिंग भोड़ा-सा फलादेशा निरूपित किया जाता है। उलापात से व्यक्ति, मा, देश, राष्ट्र आदि बा फलादेश ज्ञात किया जाता है। सर्वप्रथम व्यक्ति के लिए हानि, लाभ, जीवन, मरण, सन्तान-सुख, हर्षविवाद ॥वं विशेष अवमर्श पर घटित होने वाली विभिन्न घटनाओं का निरूपण किया जाता है। आत्राश वा निरीक्षण करते हए ताराओं को देखने से व्यक्ति अपने सम्बन्ध में अनेक प्रकार की जानकारी प्राप्त कर सकता है ।
रयत वर्ण की टेढ़ी, टूटी हुई उल्काओं को पतित होले देखने से व्यक्ति को भय, पांच महीने में परियार के व्यक्ति की मृत्यु, धन-हानि और दो महीने के बाद किये गये व्यापार में हानि, राज्य में झगड़ा, मुबद्दया एवं अनेक प्रकार की चिन्ताओं के कारण परेशानी होती है। वृष वर्ण की टूटी हुई, छिन्न-भिन्न - - -. . .- .... - .
1. शकुनाच प० । 2. निमिवादनुपाश्च, पुरुषो कालनो बलात् मु०। 3. भयान गरिएपेशालामा मु० ।