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श्रीपाल चरित्र
ओ प्राणी प्रायो संसार । सार्क गरे दुख को मार ॥ जित ही देखें नैन पसारि । मितही बांधी दुख की पारि ॥१११।। यह सा हर संसार प्रसार । बिरलो कोऊ पावं पार ।। मात पिता सुत बंधव मित्त । हय गय वाहन रथ जु पवित ॥११२।। माया और पाहि अधिकार । मिथ्या सबै रची करतार ।। काको पिता कौन को माछ । जीब अकेली पावं जाइ ।।११३।। बैठे रहे हितू पचास । वार वार जोर्व चोपास ॥ काहू पासि न होइ उपाइ । जब कर केस गहै जम भाइ ।।११४॥ सोई बडो हितू सुनि माई । भरखराइ मरघट ले जाइ ।। भज खौरि देहु मति कोइ । होनहार सोई परिहोइ ।।११५॥ प्रतिवोध्यो सगरौ परिवार । गांवन कह्यो व्याह को घार ।। प्रापुन हरषि उठाइ सुलियो। ससि वदनी सेहर वापियो ११। मरिणमय उल पहरे कन । करकंकन सोहिये रवन्न ।। नेवर पहरे प्रति झनकार । पहरी गलि मोसिन की मार ॥११७|| सूरति बास मरदियो सरीर । पहरपी अंग कसूमिल चीर ॥ करि शुगार पहुंती जोम । सिरीपाल मंडफ गयो ताम ॥११८।।
मना का विवाह मंडप में बैठना
मनां सुदरी बैठी आइ । परियन रहसि दियो छिटकाइ ।। तिहठा रुदन कर सब कोइ । टकटक रहैं मुहां मुह जोइ ॥११६।। तब सुदरि उठि ठाडी भई । निज परियन माता 4 गई ।। सुरसुदरी को गायो बिसौ । मोकौं क्यों नहि गावी तिसौ ।।१२।। पुत्री जंप बारंबार । करौ उछाह रु मंगलचार ॥ यह कहि के पुत्री वैसियो । माता बहन हियो भरि लियो ।।१२।। उरै चौंर दूलह के सीस । जै जै सबद कर नर ईस ।। बाज जहां गहर वाजने । जाचिग जन विरदाबलि भनें ।।१२२।। वंदन मरयटि दई लिलार । पहरे पार्टवर सुभसार । नांचं गांवहि मंगलचार । घंभन वेद पद फुकार ।।१२३।। भावरि सात फिरी सुभ जद । राजा गंधवौ लिनौ तबै ।। मैंनासुदरि पकरी हाथ । सौंपी श्रीपाल नर नाथ ॥१२४।।