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________________ श्रीपाल चरित्र मनवांछित सुप लहे प्रबोन । रहै भक्ति मुनिवर पद लींन ॥ कबहू न बात पाप की कहै । निस दिन दया धर्म में रहे कबह वात रूसि नषि कहे । सोधी होई सुहिर दे चहै ।। ।३३६।। दोहा सुष जननी परियन सयल, श्री जिनवर सुमरंत ।। प्रस बोते बहुत दीन, निजगृह में निवसंत ॥३३७।। इति श्रीपाल चरिते महापुराणे भव्य संग मंगल करण। बुध जन मन रंजन पतित गन गंजन सिद्ध चक्क विधि दुषहरहा। त्रिभुवन सुख कारण भव जल तारण । चौपई बंध परिमल्ल कृतं ।।३३८॥ पौष राजाकी भोपाल से भेंट मैंना सुदरी प्रति उत्तर दियो । तातै तात निौटयो गयो ।। राजा के मन उपज्यो फोह । मैं होनहार सो होह ॥ १॥ एक दिन सब सैन पलानि । ह्य गय रथ को कहै वषांनि ।। नगर निकास मेल्यो जाइ । मंत्री लीने संग लगाइ ।। २।। बहुर् यो कथा गई तिह थान । श्रीपाल जहां बन उद्यान ।। नासा पाइ गए गरि हाथ । भैसे अंग सातस लौ साथ ॥ ३॥ भ्रमत श्रमत सौ पहुँतौ तहां । राजा वर चितत हो जहाँ ।। देखि राज उठि ठाडो भयौं । मैत्रिन के मन घोसो गयौ ।। ४॥ देषत मंत्री सबनि मई लाज । यह कोहि भेट्यौ किह कांज ।। सगरे रहे मुह मुह चाइ । कोऊ पूछि सके नहिं राइ ॥ ५|| तब तिह ठा बोल्यो यो राउ । मत्री सुनी कहो सत भाउ ।। या परि मेरी हैं अति चित्त । यह मेरी प्रीतम है मित्त ॥ ६॥ याको ढिग त नेक न टरौ । या परि नेह निरंतर परयौ ॥ मंत्री कर्हे सुनौं हो राई । गर्यो सरीर हाथ अरु पाई॥ ७॥ रही दुरगंधा जित तित पूरि । याहि देषिए भजिए दूरि । तास्यो मिले कहा धार नेहु । याको प्राहे बडौं संदेहु ॥ ८॥ यह सुनिक भूपति यौ भने । मंत्री मैं तुम मूरषि गर्ने । मुष की कही न समझत वात । क्यों जानौं को है उस तात ।। ६॥
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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