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यशोधर रास
वरणवगति नहीं बाणी । नाद अपरंपर नीबजे ए॥ सहू जीव संसय हाणी होय । ए पाश्चर्य ऊपजे ए ६ मदनीवगति न होय । तुष्टादि व्यापारन नीपजे ए ।। प्रीछि जीव सह कोय । मोटू पाश्चर्य मने उपजि ए ॥१०॥ सुरय प्रभा जिन बारिण । मिम्मात तिमिरनि टालती ए ।। भव्य कमल सुख खाए । पातक पंकनि रालती ए ।।११।। चनकोति सम जिन भास । भव भ्रम खेदनि खेदती ए॥ हरस समूद्र उल्लास । कुबादीयां मान उछेदती ए ॥१२॥ मेक सुदर्शन जाम । पैतालासू नादिज वलगिए ।। पूरती भषीयो काम । महावीर वाणी नांदो तब लगिए ॥१३॥ लवणादि स्वयंभू समुद द्विीप सहीस नाशिजब लगिए ।। मेष समीए माद्र । महावीर वाणी नांदो तब लगिए ॥१४॥ विजयारष गिरि जाण । बेह घेणसूनादि जब लगिए ।। तत्व रतन राणी खाण । महाबीर वाणो नोदो तब समिए ।।१।। कुल गिरि हिमवंत मादि । पनद्रह नादि जब लगिए । हरती विषय विषाद । महावीर वाणी नांदो तब लगिए ॥१६॥ गंगा प्रादि नदी परवाह । सिंघ बीन अभीषेक जब लगिए॥ सुरणता प्रापि उछाह । महावीर वाणी नांदो तब लगिए ।॥१७॥ गंगादि महानदी चौद । नदी पर वरी मांदि जब लगिए॥ प्रतिद्वीपे सुप्रमोद महा।।१८) गजदंत गिरि बीस संख्य । जिन मुवन सूनादि जन लगिए । अपरंपरए प्रलक्ष ।महाग१६॥ विदेहादि प्रारज खंड । घरम सहीत नादि जब लगिए ।। म्लेच्छ खंड साथि प्रचंड महा॥२०॥ चक्रो हरी बलदेव । प्रगट पराकम जब लगिए । सुर नर करें अह सेव ।महा०।।२१॥ जिनयर पंच कल्याण । इन्द्र रछित नादि जब लगिए । वेहेरमाण जिण भाग महा०॥२२॥ प्रतीहरी रुद्र प्रग्यार । नारद प्रगटि जब लगिए ।। त्रिभुवन जन सुखकार |महा०॥२३॥