________________
श्री महावीर ग्रन्थ अकादमी
प्रगति परिचय
श्री महाबीर ग्रंथ अकादमी के प्रगति परिचय में मुझे यह कहते हुए प्रसन्नता है कि जिस उद्देश्य को लेकर अकादमी की स्थापना की गयी थी उसकी भोर वह निरन्तर आगे बढ़ रही है। प्रस्तुल पुष्प सहित अब तक उसके सात पुष्प निकल चुके हैं। इन सात पुष्पों में जिन कवियों का व्यक्तित्व एवं कृतित्व के रूप में मूल्यांकन प्रस्तुत किया गया है उनमें से अधिकांश कवि प्रम तक प्रति अज्ञात अथवा अल्प चर्चित रहे हैं। कुछ कवि तो ऐसे हैं जिनके व्यक्तित्व को प्रकाश में लाने का एक मात्र श्र ेय श्री महावीर ग्रंथ अकादमी को दिया जा सकता है ।
अकादमी के छुट्टे पुष्प कविवर दुलाखीचन्द, बुलाकीदास एवं हेमराज का विमोचन तिजारा ( राजस्थान ) में पञ्च कल्गारक प्रतिष्ठा महोत्सव के विशाल समारोह में परमादरणीय महामहिम राष्ट्रपति श्री ज्ञानी जैलसिंह जो सा० ने अपने कर कमलों से किया था। मह संभवत: प्रथम भवसर है जब महामहिम राष्ट्रपति महोदय ने किसी जैन विद्वान की पुस्तक का ऐसे विशालतम समारोह में विमोचन किया हो। इसलिये ऐसा गौरव प्राप्तकर लेखक एवं अकादमी दोनों माही गौरवान्वित हैं ।
प्रस्तुत सप्तम पुष्प में हमने पांच कवियों का परिचय एवं उनकी कृतियों का संकलन किया है उनमें चार तो अब तक पूर्णत प्रचर्चित एवं अज्ञात माने जाते रहे हैं। हिन्दी साहित्य में कवयित्रियों के नाम अंगुलियों पर गिने जा सकते हैं इसलिये बाई प्रीतमति की उपलब्धि एक उल्लेखनीय खोज है। बाई अजीतमत्रि के अतिरिक्त धनपाल भ० महेन्द्रकीति एवं देवेन्द्र सभी प्रचचित कवि है ।
राजस्थान के शास्त्र भण्डारों में हिन्दी रचनाओं का विशाल भण्डार दिया हुआ है । इन शास्त्र भण्डारों को जितनी अधिक छानबीन की जाती है उतनी ही
( i )