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चाई अजीतमति एवं उसके समकालीम कवि
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भास साहेलडीनो मुनि का उतर
बलता मुनीवरउ । उता बोलि सुरणों तो कोटवाल ।। क्षत्रीकुल उत्सम साहू मध्ये । क्यंम हिंसा करि विकराल ॥ जूहूं परम विचार । जीवदया मंडित सही प्राणो । सुरग मुगति सुखकार ॥१॥ अत्री धरम रणपणे पायो । जीसको साहामोपचारी ।। नाहा सता परता दाति तृण धरता। तेहने अत्री नक्य मारी ।साहे॥२॥ चापड़ा हरण दाति तृगा घरता 1 माहासता पडता अपार ।। क्षत्री पारध किम एहने मारि । चतुर करो विचार ।साहे०।३।। तीर्थकर हरी हलधर उपजि । क्षत्री वंश पवीत्र 11 मांस भक्षण जीव हिंसा । किम बोसी । जूउ वीचारी मीत्र साहे०॥४॥ जीव हता धर्म जो होय । तो माछी पूजीजि ।। मांस साधि को पाने कही। दु : गुरए लोजि रहेगा। ध्यान मौन जीव हिंसा करता । पामि जु उसम ठांम । तु नदी काठि मौन ध्यानी । ककनि दीजि मुनी नाम साहे।६।। जीव ववंतां धर्म जो कहिइ । अधम कहोनि कहिवाय ।। फेवस स्नानि जो धर्म होय । माइला तो सीव जायं ।साहे॥७॥ ब्रह्मायि पालू या निसरज्यो । जे तो बोलो बपन । वाघ सिंह सरभ परजि कहयां । ते हस्ावान करि मंन ।साहे०।।६।। से क्रूर औब वलतीं सीख देवे । अज बापड़ा बल हीण ।। रोह घणं यानि माबरखा । देखे दम्बाये दीन साहा जीव अहिंसा परम परम कह्यिो । वेद स्मृती मझार ।। जीवा लंपट जे विना । स्पसनी पपरीत चापि विचार ।। जूउ परम वीचारी.। जीव दया मंरित सही सा१०॥ जीवत दान एक जीवनें दोष । भूम दीयि एफ असेख । एक मेह सम कनक देयंता । जीवत दान विसेष सा ॥११॥ एम जागी निज दृउ मन पाणी । छांडो मिथ्या प्रांत ।। केवली भाषीत धर्म वली मारणो । त्रिभुवन माहि विख्यात साजरा