________________
यशोधर रास
क्रोध मान माया ने लोभ । सोल प्रकार दीयि भव थोभ ।। कूड कपट वली काम विचार । पंचेंद्री वस्ती विषय विकार ।।८।। कृष्ण नील कापोत जे नाम 1 जीव ने एमट करें परिणाम :: प्रात्तरोद्र ए बहू दुष्यान । जीनि भमाडिए भवरान ।।३।।
प्रकृति स्थिति अनुभाग प्रदेश । बंध तणो भेद का विशेष ।। ईखें वंचायो जीव षणं भमें । चारों गति माहि काल निगमें ।।४।। नाम करम नाना रूप करि । प्रानुपूर्वी गत्यंतर घरे ।। जीबनो ऊर्य गति छे सभाय । कम बलि विचीत्र गत्य जाम ।।८।।
संगमन खेम अगनीही जाल । भही पली बाय धंधोलि बिसाल : अथवा मंकड संकलि भरघो । जिम फेरवीयि तिम जीव फरयो ।।६।। संहार विस्तार कर्म प्रमाण । कथू प्रासम वली हाथी समान ।। जिम लघु षट माहि दीपज परयो । षटमाहि पर घट उद्योत करयो
ते बडो देहते बडो व्याप । कहयो केबलीयि नि:पाप ।। पाति करम क्षय होप ए प्राप्त । दोष रहीस गुण त्रिभुवनि व्याप्त ।।८।। जीवनमुक्त महंत भगवंत । सर्वक से कहीयिए संत ।। तरिण प्रागलि कहयो जेह । जीव स्वरूप कहो त्याहा एह ।।८।। द्रव्य नये छ प्रात्मा एक । पर्याय भावे कहीपि अनेक ।। कर्म कलंक रहीत जब थाय । अछेद प्रभेद अनंत कहिबाय ||१०|| नित्य कहियि द्रव्यिं सही। पर्यायि भनित्यज कही ।। नित्य कहिता नव्य मरय न होय । प्रनित्य कहिता गगन सम जोय |६|| जिनवर कहि जीव नाना भेद । काय एह भवि भमि सखेद ॥ एक रीसाल कहिमें एक साध । एक सरोग अने एक न व्याध || ६२।। एक छे गुरु अनेक छ सीध्य । एक मूर्ख अमेक छि दक्ष ।। एक छे राय अनेक थे भृत्य । एक करि पुण्य अनेक प्रकरय ६३॥ रागढ़वष बिखई कहि ह । वचन प्रमाण न कहीयि रोह ॥ ने पितृबनें नाचतो भमि । निज महीला सूरंगे रमि || जोह करें गदा सकति त्रिसूल । क्रोध कपट के राजे मूल ।। तेह बचन प्रमाण केम होय । स्वयं सीध पागम एम जोम |शा लोक ए स्थिरकम कहिवाय । न करे कार्य तो नास न थाय ।। बंधायो ते कहीयि नमू काम । गुर सीक्षादी भेद न जणाय ॥६६॥!