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________________ २०६ यशोधर रास नयण वारण घरणं नाणती या| नयण क्षोभावसी मरत बदन शशी एह देखता माला विरह संताप गरा काने कुडल झलकावती ।प्रा०। सेसफूल फूली उद्योत तो।। वेणी गोफणो लाहिकावती याला गम्खड़ी रतनहु जोततो ।।१।। वदने मुझ गुरागावती ।पा। भावती जय जय वाण तु । प्रावती हूं पालंघीयो पाला लैई चाली करताण तु ॥१६॥ रतनपलंग छत्री ग्रालो ।मा। हंसनलका पहि रंग तो। कर धरी शेजि हे जिसू प्रा० विनय सूउभी असंग तो ॥२०॥ प्रा. लीधी तब तेणी वार तु ।। पाणंदारे चीर छोडता लाजंती ग्रा०। रतन दीने फूतकार तु ॥२१॥ विफलथया कमल हण्या मा० तेहूं नदीवान देवाय तो॥ मान मोडाइ माननी ।आ। रही मुझ सू तनु लायतो ॥२२॥ भेद चुरासी ग्रासन ! कीचो तब संभोग तो॥ नख दीघा जे स्तन परी मा०। काम प्रसस्ति जाणे जोग सो।।२३॥ मघर संडते ऊपतु माला कोमध्वजाए लांछन तु ।। हृदय हृदय मुख परीमुख मा। तनु करी भीडयो तल तो ॥२४॥ गाह पालंघन देयतां मा० मनपरि तनु महा पेठतो ॥ विपरीत मुरत खेलता प्रा61 बोनपैर चपल ते दीठतो ॥२५॥ अमृता मालती महालली पाoll हू भमरो इम जोयतो । ममता जागे कमलगी पालन हूं मकरंद सम होयतो ।।२६।। ममृता चंदन छोडूउ ।।प्रा०। हूँ भोगी इम जाण दू ।। अमृता सरस तलावडी प्रा०ा हूं मेगल वखारण तु ॥२७॥ अमृता जाणे वीजली !मा। हूं वली मेघ समान सो ॥ अमृता जाणे मीठी झाखडी मारा हूं जाणे मंडपवान तु ॥२८॥ अमृता ए कल्प मेलडी मा०ा हूं कल्पवृक्ष विचार तु ।। अमृता रती रमती रुडी पाहूं कामह अवतार तु ॥२६॥ इम सुरत सुख भोगयता प्रा0 परसेनश्रम लीनतो ।। हू सुतो तब रंगभरी ।पा। ममृता कंठे कर दीन तो ॥३०॥ तेण गुण क्षण भरण चीतब पाल। सुरतकला प्रेम भाग तो । मकर नार उपर नीडी प्रा० माय वान लहे लागतो ॥३१॥
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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