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________________ बाई श्रीमती एवं उसके समकालीन कबि अन नरेंद्र नागेंद्र | सूर गुरु सूरके चन्द्र ।। के अवतरयो ए काम । गुण लक्षण कैरो ठाम ||३४|| जागे ध्यायतो समोह । दीठि ऊपनि मोह || जा प्रगट क्षत्री धर्म । एणी विरि करि घणो भर्म ||३५|| ८५ नगरी पौलि प्रकार । सात खर्गा वर अपार ॥ चहूटां चोकि श्राव्यु | नारी फूलि वधाव्यु ||३६|| मेढी गुख़सू वीचार । जीवि बहुविध नार ॥ नगरी सोभा महंत । धज तोरण झलकंत ||३७|| चंदन हाथा चीनाम । जाणे नगरी हसि सकाम ॥ गूठी लहिकि सहरा कि जाणे नगरी हरषि नाषि ||३८|| रतन तरणी जगा जोत 1 निसी परिण घरो उद्यत ॥ राय घलहरद्दि हो । जाणे नगरी नारी नो चूडो ||३२|| कारंजे नीर भरए । जाणे प्रभोषण धरए ॥ पांजरि पोपट पढिए । जाणे विनय मुझ दृढए ॥४०॥ नगरी महि सुभ ठांम । जान उत्यारा विश्राम ॥ धवल हरे सहू उत्तरयो । मानवी मंगल करो ||४१ || चूहा स्नान विलेपन मुझ वां वो बहुरीता चार 11 लगन दिन यानें घरी । नमणि न वाडि नार ॥६॥ १॥ रतन जडीत ग्रासन धरम् । माणक मोती चोक || कनक कलस घं जलि भरथा । पल्लव यावा असोक || २ || रागदेशाख 5 नारी नवरंग चीर सू । घाघरी आलोघार ॥ सर्व सोही सरगार सूं आदि वधावा माट ||३३| मास फागुनी नारी नामें नारंगदे । श्रावि नव नेह | मुरादे गुण गोरडी । जीवादे जेह ||१|| हीरा देहे जिहसि । हरख हरषादे ।। सणगार सू' सींगार दे । मचक मरषादे ॥२॥ १७७
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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