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आत्मानुशासनम् .
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जो स्वयं कषायोंके वशीभूत हो करके भी अपने शान्त मनकी प्रशंसा करते हैं उनके लिये चूहे-बिल्लीका
उदाहरण तपश्चरण आदिमें उद्युक्त होनेके साथ दुर्जय मात्सर्यभावको भी छोडना चाहिये
२१५ क्रोधसे होनेवाली कार्यहानिके लिये महादेवका उदाहरण मानके कारण बाहुबली क्लेशको प्राप्त हुए वर्तमानमें गुणोंका लेश भी न होनेपर प्राणी अभिमानको
प्राप्त होता है संसारमें उत्तरोत्तर एक दूसरेसे गुणाधिक देखे जानेपर मान
करना योग्य नहीं है मायासे होनेवाली हानिके लिये मरीचि, युधिष्ठिर और
कृष्णका उदाहरण मायासे भयभीत रहनेकी प्रेरणा मायावी समझता है कि मेरे कपटव्यवहारको कोई नहीं जानता, परन्तु वह प्रगट हो ही जाता है
२२२ लोभके वश होकर प्राण देनेवाले चमर मृगका उदाहरण २२३ विषयविरति आदि गुण निकट भव्यको ही प्राप्त होते हैं २२४ क्लेशजालको समल कौन नष्ट करता है
२२५ मुक्तिके भाजन कौन होते हैं रत्नत्रयके धारक साधुको इन्द्रिय-चोरोंसे सदा सावधान रहना चाहिये ।
२२७ संयमके साधनभूत पीछी-कमण्डलु आदिसे भी मोह
छोडनेका उपदेश धीरबुद्धि तपस्वी अपनेको कृतार्थ कब मानता है। ज्ञानके अभिमान आशा-शत्रुकी उपेक्षा नहीं करना चाहिये २३० रागी जीव ज्ञान-चारित्रसे संयुक्त होनेपर भी प्रतिष्ठाको प्राप्त
नहीं होता जबतक जीव रागको छोडकर द्वेष और फिर उसे छोडकर
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