________________
नव देवता स्तवन
दोहा . परमेष्ठी पाँचों नमूं, जिनवाणी उरलाय । जिन मारग को धारकर, चैत्य चैत्यालय ध्याय ।।
(तर्ज - अहो जगत् गुरु देव सुनियो ........) अरिहन्त प्रभु का नाम, है जग में सुखदाई । घाति चतु क्षयकार, केवल ज्योति पाई ।। वीतराग सर्वज्ञ, हित उपदेशी कहाये । ऋद्धि-सिद्धि सब पाय, जो नित भक्ति सुध्यावे ।।१।। सिद्ध प्रभु गुणखान, सिद्धि के हो प्रदाता । कर्म आठ सब काट, · करते मुक्ति वासा ।। शुद्ध बुद्ध अविकार, शिव सुखकारी नाथा । ऋद्धि-सिद्धि सब पाय, जो नित नावे माथा ।।२।। आचारज गुणकार, पञ्चाचार को पाले। शिक्षा दीक्षा प्रधान, भविजन के दुख टाले ।। अनुग्रह निग्रह काज, मुक्ति मारग चलते । ऋद्धि सिद्धि सब पाय, जो आचारज भजते ।।३।। ज्ञान ध्यान लवलीन, जिनवाणी रस पीते । अध्ययन शिक्षा प्रदान, संघ में जो नित करते ।। रत्नत्रय गुणधाम, उपदेशामृत देते । ऋद्धि सिद्धि सब पाय, जो नित उवज्झाय भजते ।।४।।
(१)