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________________ आराधनासमुच्चयम् ३२० मुनिराज के साथ विवाद कर पराजित हो जाने से क्रोधित हुए शुक्र, बृहस्पति, प्रह्लाद और बलि चारों मंत्रियों ने तलवार लेकर वन की ओर गमन किया। जिस स्थान पर विवाद हुआ था, उसी स्थान पर श्रुतसागर महाराज को खड़े देखकर उन्होंने विचार किया, सर्वप्रथम इसी का काम तमाम करना चाहिए, उसके बाद दूसरों का । तत्काल चारों ने एक साथ मुनिराज पर तलवार का प्रहार करने का उद्यम किया, परन्तु मुनिराज के पुण्य प्रभाव व प्रताप से प्रेरित होकर वहाँ के यक्ष ने उनको वैसे-का-वैसे कील दिया। वे वहाँ से हिल नहीं सके। प्रहार की मुद्रा में पत्थर की मूर्ति के समान स्थिर रहे। प्रात:काल होते ही मंत्रियों की करतूत सारे नगर में फैल गई। राजा ने सुना तो वह भी दौड़ा-दौड़ा आया और देखकर आश्चर्यचकित होकर उनकी बार-बार निन्दा की। देवता ने भी उनको फटकार लगाई। राजा ने उन चारों मंत्रियों को मंत्रिपद से च्युत कर अपने देश से निकाल दिया। ____ हस्तिनापुर के राजा महापद्म ने पद्म नामक पुत्र को राज्य देकर विष्णु नामक पुत्र के साथ दिगम्बरी दीक्षा ग्रहण कर ली। तपश्चरण के प्रभाव से विष्णुकुमार को विक्रिया ऋद्धि प्राप्त हुई। पिता के दीक्षित हो जाने पर हस्तिनापुर पर पद्म राजा राज्य करने लगे। उन्हें सब कुछ सुख होने पर भी एक बात का बड़ा दुख था। वह यह कि कुंभपुर का राजा सिंहबल उनको बहुत कष्ट पहुँचाया करता था। सिंहबल पद्मराजा की प्रजा पर एकाएक धावा बोल कर अपने किले में जाकर छिप जाता। इसी समय श्रीवर्मा के चारों मंत्री उज्जयिनी से निकल कर हस्तिनापुर में आ पहुँचे। योगायोग से पद्म नामक राजा के मंत्री बनकर सिंहबल को पकड़कर पद्म राजा के चरणों में झुकाकर उसे चिन्ता से मुक्त कर दिया। राजा ने खुश होकर कहा - "तुम्हारा में बहुत कृतज्ञ हूँ। यद्यपि उसका प्रतिफल नहीं दिया जा सकता, तब भी तुम जो कहो, वह मैं तुम्हें देने को तैयार हूँ।" उत्तर में बलि नाम के मंत्री ने कहा - "प्रभो ! आपकी हम पर कृपा है, तो हमें सब कुछ मिल चुका । इस पर भी आपका आग्रह है तो उसे हम अस्वीकार भी नहीं कर सकते। अभी हमें कुछ आवश्यकता नहीं है। जब समय आएगा तब आपसे प्रार्थना करेंगे।" इसी समय श्री अकम्पनाचार्य संघ सहित अनेक देशों में बिहार करते हुए हस्तिनापुर के उद्यान में आकर ठहरे। अकम्पनाचार्य के आगमन को सुनकर मंत्रियों का हृदय प्रतिहिंसा से बेचैन हो उठा। थोड़ी देर विचार कर पद्म राजा के पास जाकर उन्होंने अपना पुरस्कार माँगा केवल सात दिन का राज्य । राजा ने उनका छल-कपट नहीं समझा। उसने अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण करने के लिए शीघ्र ही 'तथास्तु' कह दिया। राज्य के प्राप्त होते ही उनकी प्रसन्नता का कुछ ठिकाना न रहा। उन्होंने मुनिजनों का घात करने के लिए यज्ञ का बहाना बनाकर षड़यंत्र रचा जिससे सर्व साधारण न जान सके कि उनकी नीयत कैसी है।
SR No.090058
Book TitleAradhanasamucchayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavichandramuni, Suparshvamati Mataji
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size10 MB
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