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________________ आराधनासमुच्चयम २५१ अर्थ - पूर्वोपार्जित कर्मों का उदय में आकर झड़ जाना, नष्ट हो जाना, आत्मा से पृथक् हो जाना निर्जरा है। कर्मों की स्थिति पूरी होकर जो कर्म नष्ट होते हैं, वह कर्मोदयोत्था निर्जरा है और स्थिति पूरी हुए बिना जो कर्म झड़ते हैं, वह उदीरणोत्था निर्जरा है। कर्मोदयस्था निर्जरा उदयोत्था संसृतिगतजीवाना सर्वदैव सर्वेषाम् । ज्ञानावरणादीनां स्थितिजे काले परिसमाप्ते ॥१८२॥ अन्वयार्थ - जानाधरणादीनां - ज्ञानावरणादि के। स्थितिजे - स्थितिजन्य । काले - काल के। परिसमाप्ते - समाप्त होने पर। उदयोत्था - कर्म के उदय से उत्पन्न निर्जरा। सर्वेषां - सारे। संसृतिगतजीवानां - संसारी जीवों के। सर्वदा - निरंतर । एव - ही, होती है। अर्थ - ज्ञानावरणादि कर्मों की स्थिति पूरी हो जाने पर उदय में आकर कर्म स्वकीय फल प्रदान कर नष्ट हो जाते हैं, यह उदयोत्था निर्जरा संसारी प्राणियों के निरंतर होती रहती है अर्थात् मिथ्यात्व गुणस्थान से लेकर १४वें गुणस्थान तक सर्वगुणस्थानों में तथा एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय संज्ञी पर्यन्त सर्व जीवों के निरंतर (प्रतिक्षण) कर्म उदय में आकर स्वकीय फल प्रदान कर झर जाते हैं, आत्मा से पृथक् होते ही रहते हैं। अत: कर्मोदयस्था निर्जरा संसारी प्राणियों के निरंतर होती रहती है। उदीरणोत्था निर्जरा कालेऽप्यपरिसमाप्ते परिणामप्रग्रहावकृष्टानाम्। कर्माणूनां भवति [दीरणोत्था द्विभेदा सा ॥१८३॥ देशसकलाभिधाभ्यां देशाख्यानात्तयोरनेकविधा। सकला तपसा महता दुरितानां निर्जरा भवति॥१८४।। युग्मम्।। अन्वयार्थ - परिणामप्रग्रहावकृष्टानां - परिणाम रूपी रज्जु से अवकृष्ट (खींचे हुए) कर्माणूनां - कर्म परिणामों का। काले- काल के । अपरिसमाप्ते - समाप्त न होने पर। अपि - भी। कर्म झरते हैं वह हि - निश्चय से। उदीरणोत्था - उदीरणा से उत्पन्न हुई निर्जरा है। सा - वह निर्जरा | देशसकलाभिधाभ्यां - एकदेश और सकलदेश के भेद से। द्विभेदा - दो प्रकार की है। तयोः - उन दोनों निर्जराओं में। देशाख्यानात् - एकदेश नाम की निर्जरा । अनेकविधा - अनेक प्रकार की है। महता - महान् । तपसा - तप के द्वारा । दुरितानां - पापों की। निर्जरा - निर्जरा। भवति - होती है वह । सकला - सकलनिर्जरा कहलाती है। अर्थ - स्वकीय स्थिति के पूर्ण हुए बिना पूर्वोपार्जित कर्मों का उदय में आ जाना वह उदीरणा कहलाती है। उस उदीरणा के समय कर्म स्वकीय फल देकर नष्ट हो जाते हैं। वह उदीरणोत्थ निर्जरा कहलाती है। उदीरणोत्थ निर्जरा दो प्रकार की होती है - एकदेश और सर्वदेश | एकदेश निर्जरा अनेक प्रकार
SR No.090058
Book TitleAradhanasamucchayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavichandramuni, Suparshvamati Mataji
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size10 MB
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