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________________ आराथनासमुच्चयम् ०२३१ इन नारकीय दुःखों का विचार करना अधोलोक का विचार है। मध्य लोक में झल्लरी के आकार के असंख्यात द्वीप-समुद्र हैं। मन्दराचल (सुमेरुपर्वत) की चूलिका से ऊपर का क्षेत्र ऊर्ध्वलोक है। मन्दराचल के मूल से नीचे का क्षेत्र अधोलोक है। मन्दराचल से परिच्छिन्न अर्थात् तत्प्रमाण मध्यलोक है। तनुवातवलय के अन्तभाग तक तिर्यग्लोक अर्थात् मध्यलोक स्थित है। मेरु पर्वत एक लाख योजन विस्तार वाला है। उसी मेरु पर्वत के ऊपर तथा नीचे इस तिर्यग्लोक की अवधि निश्चित है। मध्य लोक में असंख्यात द्वीप, समुद्र एक दूसरे को वेष्टित करके स्थित हैं, समवृत्त (गोल) हैं। इनमें से प्रथम जम्बूद्वीप है और अन्त में स्वयंभूरूपण समुद्र है तथा दीन में असंख्यान द्वीप और समुद्र हैं। चित्रा पृथिवी के ऊपर बहुमध्यभाग में एक राजू लम्बे चौड़े क्षेत्र के भीतर एक-एक को चारों ओर से घेर कर द्वीप और समुद्र स्थित हैं। सभी समुद्र चित्रा पृथिवी को खण्डित कर वज्रा पृथिवी के ऊपर स्थित हैं और सर्वद्वीप चित्रा भूमि के ऊपर स्थित हैं। ___ मध्यभाग से प्रारम्भ करने पर मध्यलोक में क्रम से (१) जम्बूद्वीप, लवण सागर (२) धातकीखण्ड-कालोद सागर, (३) पुष्करवरद्वीप-पुष्करवर समुद्र, (४) वारुणीवरद्वीप - वारुणीवर समुद्र, (५) क्षीरवर द्वीप - क्षीरवर समुद्र, (६) घृतवर द्वीप - घृतवर समुद्र, (७) क्षौद्रवर (इक्षुवर) द्वीप - क्षौद्रवर (इक्षुवर) समुद्र, (८) नन्दीश्वर द्वीप - नन्दीश्वर समुद्र, (९) अरुणीवर द्वीप - अरुणीवर समुद्र, (१०) अरुणाभास द्वीप - अरुणाभास समुद्र, (११) कुण्डलवर द्वीप - कुण्डलवर समुद्र, (१२) शंखवरद्वीप - शंखवर समुद्र, (१३) रुचकवर - द्वीप - रुचकवर समुद्र (१४) भुजगवरद्वीप - भुजगवर समुद्र, (१५) कुशवर द्वीप - कुशवर समुद्र, (१६) क्रौंचवर द्वीप - क्रौंचवर समुद्र ; ये १६ नाम मिलते हैं। ___ संख्यात द्वीप-समुद्र के आगे जाकर पुन: एक जम्बूद्वीप है (इसके आगे पुन: उपर्युक्त नामों का क्रम चलता जाता है।) मध्यलोक के अन्त से प्रारम्भ करने पर - (१) स्वयंभूरमण समुद्र-स्वयंभूरमण द्वीप, (२) अहीन्द्रवर समुद्र - अहीन्द्रवर द्वीप, (३) देववर समुद्र - देववर द्वीप, (४) यक्षवर समुद्र - यक्षवर द्वीप, (५) भूतवर समुद्र - भूतवर द्वीप, (६) नागवर समुद्र - नागवर द्वीप, (७) वैडूर्य समुद्र - वैडूर्य द्वीप, (८) वज्रवर समुद्र - वज्रवर द्वीप (९) कांचन समुद्र - कांचन द्वीप, (१०) रुप्यवर समुद्र - रुप्यवर द्वीप, (११) हिंगुल समुद्र - हिंगुल द्वीप, (१२) अंजनवर समुद्र - अंजनवर द्वीप, (१३) श्याम समुद्र-श्याम द्वीप, (१४) सिन्दूर समुद्र - सिन्दूर द्वीप, (१५) हरितास समुद्र - हरितास द्वीप, (१६) मन:शिल समुद्र - मन:शिलद्वीप। सागरों के जल का स्वाद - चार समुद्र अपने नामों के अनुसार रसवाले, तीन उदक रस अर्थात् स्वाभाविक जल के स्वाद से संयुक्त, शेष समुद्र ईख रस समान रस से सहित हैं। तीसरे समुद्र में मधुरूप
SR No.090058
Book TitleAradhanasamucchayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavichandramuni, Suparshvamati Mataji
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size10 MB
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