________________
आराधनासार - ५३
निश्चयाराधनायां स्थितिमलभमानस्तावद्व्यवहाराराधनामाराधयति पश्चान्मनसो दादर्थं प्राप्य क्रमेण निश्चयाराधनामाराधयतीत्यभिप्रायः ॥ १२ ॥
ननु भगवन् क्षपकः कथं भवं मुंचतीति पृष्टं सत्याचार्य आह
कारणकज्जविभागं मुणिऊणं कालपहुदिलद्धीए । लहिऊण तहा खवओ आराहओ जह भवं मुवइ ॥ १३ ॥
कारणकार्यविभागं मत्त्वा कालप्रभृतिलब्धीः ।
लब्ध्वा तथा क्षपक आराधयतु यथा भवं मुंचति ॥ १३ ॥
आराधयतु ध्यायतु । कोसौ । खवओ क्षपकः । कं। अर्थात् परमात्मानमेव । कथं । तहा तथा तेन प्रकारेण जह यथा येन प्रकारेण मुबइ मुंचति त्यजति । कं । भवं संसारं । किं कृत्वाराधयतीत्याह । मुणिऊण मत्त्वा ज्ञात्वा । के । कारणकज्जविभागं कारणकार्यविभागं विभजनं विभागः कारणं च कार्यं च कारणकार्ये तयोर्विभागः कारणकार्यविभागस्तं कारणकार्यविभागं । कारणकार्ये हि पूर्वोत्तरगुणवैशिष्ट्यापेक्षयोत्पद्येते यथा कारणं व्यवहाराराधना कार्यरूपनिश्चयाराधनाया उत्पादकत्वात् । कार्य निश्चयाराधना कारणरूपत्र्यवहाराराधनाया उत्पाद्यत्वात् । तथा कारणं निश्चयाराधना कार्यरूपमोक्षस्योत्पादकत्वात् । कार्य कारणरूपनिश्चयाराधनाया उत्पाद्यत्वात् । तथा कारणं मोक्षः
मोक्षः को प्राप्त करने का प्रयत्न कर क्योंकि निश्चय आराधना की उपासना के बिना आत्मविशुद्धि वा स्वस्वभाव की प्राप्ति नहीं होती ॥ १२ ॥
"भगवन् ! क्षपक संसार का नाश कैसे कर सकता है?" ऐसा पूछने पर आचार्य कहते हैं
हे क्षपक ! काल आदि लब्धियों को प्राप्त कर और कार्य-कारण विभाग को जानकर चार आराधना की आराधना करो जिससे संसार के वास से छूट जाओ ॥ १३ ॥
कालादि लब्धि का संक्षेप से कथन पूर्व में किया है। उस कालादि लब्धि को प्राप्त कर ही यह जीव आराधना का आराधक होता है।
व्यवहार और निश्चय आराधना में कार्य कारण भाव है अर्थात् व्यवहार आराधना कारण है और निश्चय आराधना कार्य है। क्योंकि व्यवहार आराधना निश्चय आराधना रूप कार्य की उत्पादक है और व्यवहार रूप कारण आराधना के द्वारा निश्चय आराधना उत्पाद्यमान है क्योंकि पूर्व उत्तर गुण वैशिष्ट्य की अपेक्षा कारण कार्य उत्पन्न होता है अतः पूर्ववर्ती कारण होता है और उत्तरवर्ती कार्य होता है।
मोक्ष रूप कार्य की उत्पादक होने से व्यवहार आराधना कारण है और मोक्षरूप कार्य की उत्पत्ति रूप निश्चय आराधना उत्पाद्य ( कार्य ) है ।
अथवा कार्य रूप मोक्ष की उत्पादक होने से निश्चय आराधना कारण है और कारणरूप निश्चय आराधना से उत्पन्न होने से मोक्ष कार्य है।