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आराथनासार -४०
ज्ञानाराधनां व्याख्याय चारित्राराधनां प्रतिपादयति
तेरहविहस्स चरणं चारित्तस्सेह भावसुद्धीए। दुविहअसंजमचाओ चारित्ताराहणा एसा ॥६॥
त्रयोदशविधस्य चरणं चारित्रस्येह भावशुद्ध्या। द्विविधासंयमत्यागश्चारित्राराधना एषा ॥६॥
ज्ञानाराधना की व्याख्या करके अब चारित्र आराधना का प्रतिपादन करते हैं
यहाँ पर भावशुद्धि पूर्वक तेरह प्रकार के चारित्र का आचरण करना और दो प्रकार के असंयम का त्याग करना यह चारित्र आराधना है॥६॥
पंच महाव्रत, पंच समिति और तीन गुनि का पालन करना तेरह प्रकार का चारित्र कहा है।
जो महापुरुषों (महाशक्तिशाली पुरुषों) के द्वारा धारण करने योग्य हैं वे महाव्रत कहलाते हैं। वे महाव्रत पाँच होते हैं।
___ अहिंसा महाव्रत- हिंसा दो प्रकार की है भाव और द्रव्य । प्रमाद के वशीभूत होकर एकेन्द्रिय आदि प्राणियों का घात करना द्रव्यहिंसा है और आत्मा में रागद्वेष का प्रादुर्भाव होना भावहिंसा है। दोनों प्रकार की हिंसा का त्याग करना अर्थात् मन-वचन-कावसे किसी भी जीव की विराधना नहीं करना तथा आत्मा को कर्मों से कसने वाली, दुःख देने वाली वा आत्मा को दुर्गति में ले जाने वाली विभाव परिणति रूप जो कषाय है, उसका त्याग करना, कषाय के आधीन नहीं होना अहिंसा महाव्रत है।
प्रमाद वा कषाय के वशीभूत होकर जो कुछ कहा जाता है वह असत्य है। उस असत्य के चार भेद हैं। 'है' उसको नहीं कहना, 'नहीं है' उसको 'है' कहना, वस्तु का विपरीत कथन करना और अप्रिय, निन्दनीय एवं सावध कथन करना।
अपने द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव से जो वस्तु है, उसका निषेध करना प्रथम असत्य है। जैसे आत्मा स्वकीय द्रव्य, क्षेत्र, काल भाव से अस्ति रूप है उसका निषेध करना कि आत्मा है ही नहीं। पृथ्वी जर
जल, अग्नि और वायु इन चार भूतों के संयोग से चेतना शक्ति उत्पन्न होती है तब आत्मा उत्पन्न हुआ ऐसा कहा जाता है
और इनका नाश होता है तब आत्मा का भी नाश हो जाता है, न परलोक है, न नरक है, न स्वर्ग है, न पुण्य - पाप है और न पुण्य-पाप का भोक्ता आत्मा नाम की वस्तु ही है। इस प्रकार का कथन करना, अस्ति का निषेध करने वाला असत्य है।
जो वस्तु नहीं है, उसका अस्ति रूप से कथन करना दूसरा असत्य है- जैसे मोक्षपद को प्राप्त हुए जीव कभी संसार में लौटकर नहीं आते, उनका संसार में लौटना कहना, इत्यादि नास्त्यात्मक असत्य है।
वस्तु का विपरीत कथन करना, जैसे वस्तु अनेक धर्मात्मक है उसका एकान्त रूप से कथन करना विपरीत असत्य है। सांख्य मत के अनुसार आत्मा को सर्वथा नित्य कहना, बौद्ध मतानुसार वस्तु को सर्वथा अनित्य कहना, इत्यादि रूप से वस्तु का कथन करना विपरीत असत्य है।
__ जिस बात को कहने से जीवों की हिंसा होती है, जिसको सुनकर श्रोता पापों में प्रवृत्ति करता है, विपरीत आचरण करता है वह सावध असत्य है। जैसे किसी को कहना 'तुम खेती करो', 'कारखाना खोल लो', 'नाली साफ करो', इत्यादि वचनों से जीवहिंसा में वृत्ति करता है, वह सावध असत्य है।