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प्रकार का है। क्षेत्र, वास्तु, हिरण्य, सुवर्ण, धन, धान्य, दासी, दास, कुप्य और भाण्ड के भेद से बाह्य परिग्रह १० प्रकार का है। मिथ्यात्व, हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुरुष वेद, नपुंसक वेद, क्रोध, मान, माया और लोभ ये १४ प्रकार के आभ्यन्तर परिग्रह हैं।
अथवा-शरीर बाह्य परिग्रह है और विषयों को अभिलाषा अन्तरंग परिग्रह है। इन दोनों प्रकार के परिग्रह का त्याग करना संगत्याग कहलाता है।
परिग्रहत्याग से ही मानव परम उपशम भावों को प्राप्त होता है तथा उपशम भाव को प्राप्त हुआ जीव ही आत्मस्वरूप में स्थिर हो सकता है। क्योंकि परिग्रह छोड़े बिना मानसिक मलिनता दूर नहीं हो सकती अतः द्विविध परिग्रह का त्याग करने वाला मानव ही संन्यास के योग्य होता है। आचार्यदेव ने 'संगत्याग' को संन्यास में कारण कहा है।
(३) कषाय-सल्लेखना - कषाय-सल्लेखना का अर्थ है कषायों को कृश करना। कषायों की मन्दता के बिना मानव स्वकीय विषयों में दौड़ने वाली इन्द्रियों पर विजय प्राप्त नहीं कर सकता और न शरीर के प्रति निर्मोह हो सकता है। जो इन्द्रियों एवं मन के आधीन है, शरीर पर ममत्व रखता है वह संन्यास धारण नहीं कर सकता है।
वास्तव में, इन्द्रियविषयों की पूर्ति के लिए ही इस जीव की कषायें जागृत होती हैं अत: इन्द्रियों को जीतना आवश्यक है। यह मानव यद्यपि उपवास, आतापनादि बाह्य योगों के द्वार! शरीर सल्लेखना - शरीर को अत्यन्त कृश कर लेता है परन्तु जब तक कषायों को कृश नहीं करता तब तक वह संन्यास के योग्य नहीं होता।
ये कषायें अत्यन्त बलिष्ठ तथा दुर्जय है। इनके द्वारा ही यह ज्ञानमय आत्मा स्वरूप को भूलकर दुःखमय संसार-समुद्र में गोते खा रहा है।
कषायें संयम की घातक हैं और संयम के अभाव में समाधिमरण नहीं होता। अतः संन्यास के लिए कषाय-सल्लेखना आवश्यक है।
(४) परीषहजय - शीतादि परीषह सुभटों के समान अत्यन्त बलवान हैं। ये परीषह महातपस्वी, ज्ञानी, संयमियों को भी एक झटके में संयम के मार्ग से च्युत कर देते हैं। परीषह रूपी योद्धाओं से पराजित हुए मानव संन्यास रूपी युद्धस्थल से विमुख होकर सांसारिक सुखों की शरण में आ जाते हैं। परीषह रूपी दावानल के ताप को बुझाने के लिए ज्ञानरूपी सरोवर में प्रवेश करना चाहिए। क्योंकि स्वस्वभाव रूपी जल का पान कर मन को शांत करने वाला ही आत्मीय सुख को प्राप्त कर सकता है। अतः परीषहों पर जय प्राप्त करना भी समाधिमरण का कारण है, ऐसा आचार्य ने निर्देश किया है।