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आराधनासार- ९७७
ज्ञानवर्णादिगतिस्थित्यवगाहवर्तनालक्षणाः, द्रव्यपर्यायाः नृत्वदेवत्वादिद्व्यणुकद्वित्रिगुणादि धर्माधर्मयोलोकाकाशस्य शुद्धपर्याय एवाकाशस्य घटाकाशपटाकाशादिः कालस्य समयादिलक्षणा तैर्द्रव्यगुणपर्यायैर्युक्तमित्यर्थः । कथं जानाति । एयसमयस्स मज्झे एकस्य समयस्य मध्ये एकसमयमध्ये सूर्यस्य प्रतापप्रकाशवत् । यथा क्रिल सूर्यस्य प्रतापप्रकाशावेकस्मिन्नेव समये उत्पद्येते तथा वास्य शुद्धात्मनः सर्वस्यापि सावयवद्रव्यस्य ज्ञातृत्वं दर्शनित्त्वं चैकस्मिन्नेव समये संभव: छद्मस्थानां तु यथाक्रमेण । किं विशिष्टः सिद्धः । द्रव्यकर्म-भावकर्म - नोकर्मादिपरित्यक्तः । पुनः किं विशिष्ट: । स्वभावस्थः स्वभावे चिदानंदात्मके तितीति स्वभावस्थ: । जानाति पश्यतीत्युक्त्वा ज्ञानदर्शन - गुणद्वयं सिद्धात्मनः प्रकाशितं । यदुक्तम्
विश्वं पश्यति वेत्ति शर्म लभते स्वोत्पन्नमात्यंतिकं नाशोत्पत्तियुतं तथाप्यचलकं मुक्त्यार्थिनां मानसे ।
छहों द्रन्यों को ठहरने के लिए स्थान - अवगाहन देना आकाश का गुण है।
प्रत्येक द्रव्य के परिवर्तन में निमित्त काल द्रव्य है। वा वर्त्तना जिसका लक्षण है वह काल द्रव्य है । मानव, देव, नारकी, तिर्यंच आदि जीव की अशुद्ध पर्याय है और सिद्ध पर्याय शुद्ध पर्याय। दो अणु, तीन अणु आदि असंख्यात अणुओं का स्कन्ध पुगल की पर्यायें हैं।
घटाकार पटाकार आदि आकार रूप होना आकाश की पर्याय है ।
समय, आवली, श्वासोच्छ्वास, मिनट, महीना आदि काल की पर्याय हैं। प्रतिक्षण परिवर्तन होना काल द्रव्य की पर्याय है। इस प्रकार छहों द्रव्यों की गुण पर्यायों को सिद्ध भगवान एक समय में जानते और देखते है ।
जिस प्रकार सूर्य का प्रताप और प्रकाश एक ही समय में उत्पन्न होता है, उसी प्रकार ज्ञानावरणादि द्रव्यकर्म, रागद्वेष आदि भावकर्म और शरीर आदि नोकर्म से रहित व्यक्ति रूप कार्य - समयसार सिद्धात्मा सारे द्रव्यों और उनकी गुण एवं पर्यायों को एक समय में जानते और देखते हैं। यद्यपि छद्यस्थ जीव प्रथम समय में देखते हैं और दूसरे समय में जानते हैं, परन्तु सिद्ध भगवान के दर्शनोपयोग और ज्ञानोपयोग दोनों एक साथ होते हैं।
सिद्धभगवान चिदानन्दात्मक अपने स्वभाव में स्थित हैं, इसलिए वे स्वभावस्थ कहलाते हैं। सिद्ध भगवान दर्शनोपयोग, ज्ञानोपयोगमय हैं इसलिए थे ज्ञाता द्रष्टा हैं। कहा भी है
सिद्ध भगवान सारे पदार्थों को जानते हैं, देखते हैं, स्वात्मोत्पन्न आत्यन्तिक सुख को भोगते हैं, व्यय और उत्पाद युक्त होते हुए भी अचल हैं। मुक्ति के इच्छुक मानवों के मन में निरन्तर एकीभूत होकर निवास