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आराधनासार- १७५
पयडेड़ प्रकटीभवति । किं तत् । अनंतणाणचउखंधं अनंतज्ञानादीनां चतुः स्कंधं अनंतज्ञानचतु: स्कंध अनंतविज्ञानानंतवीर्यतानंतसौख्यत्वानंतदर्शनलक्षणं । कदा तदेतच्चतुष्टयं प्रकटीभवति । णीसेसकम्मणासे निःशेषाणि यानि कर्माणि निःशेषकर्माणि तेषां नाशः निःशेषकर्मनाशस्तस्मिन् निशेषकर्मनाशे सति । न केवलमनंतज्ञानचतु:स्कंधं प्रकटीभवति । अण्णेवि गुणा य तहा तथा तेनैव प्रकारेण अन्येपि अपरे गुणाः सूक्ष्मत्वाव्याबाधादयोऽनंतगुणा: प्रकटीभवन्ति तत्तत्कर्मक्षयात्ते ते गुणाः प्रकृष्टाः खलु जायते । तद्यथादृबोध परमौ तदावृतिहते: सौख्यं च मोहक्षयात्, वीर्यं विघ्नविघाततोऽप्रतिहतं मूर्तिर्न नामक्षतेः । आयुर्नाशवशान्न जन्ममरणे गोत्रेण गोत्रं विना, सिद्धानां न च वेदनीयविरहाद्दुःखं सुखं चाक्षयम् ॥ यैर्दुःखानि समाप्नुवंति विधिवज्जानंति पश्यंति नो वीर्यं नैव निजं भजंत्यसुभृतो नित्यं स्थिताः संसृतौ । कर्माणि प्रतानि तानेि महता योगेन यंस्त सदा सिद्धानंतचतुष्टयामृतसरिन्नाथा भवेयुर्न किम् ||
निर्विकल्प ध्यान के बल से आत्मा के ज्ञानावरणादि आठ कर्म अथवा नृत्य कर्म, भाव कर्म और नोकर्म रूप सारे कर्मों का नाश हो जाने पर अनन्त दर्शन, अनन्त ज्ञान, अनन्त सुख और अनन्त वीर्य चतुस्कन्ध रूप गुण प्रकट होते हैं तथा कर्मों का क्षय हो जाने पर केवल अनन्त ज्ञानादि गुण ही प्रकट नहीं होते अपितु अन्य सूक्ष्मत्व, अव्याबाधत्व आदि अनन्त गुण प्रकट होते हैं। जैसे- ज्ञानावरण का नाश होने से अनन्त ज्ञान की प्राप्ति होती है, दर्शनावरण का क्षय होने पर अनन्त दर्शन का आविर्भाव होता है। मोहनीय कर्म के क्षय से अनन्त सुख उत्पन्न होता है । अन्तराय कर्म के विनाश से अनन्त वीर्य उत्पन्न होता है। नाम कर्म का क्षय हो जाने से अमूर्तित्व गुण का प्रादुर्भाव होता है। आयु के नाश के वश से जन्म-मरण नहीं होता है, गोत्र के नाश से ऊँच-नीच के अभाव रूप अगुरुलघु गुण प्रकट होता है और वेदनीय कर्म के नाश से सिद्धों को दुःख नहीं होता अपितु अक्षय सुख होता है।
कर्माधीन होकर जो-जो दुःख हमने भोगे हैं उन सब को जानते देखते हैं। संसार में रहने वाले संसारी प्राणी स्वकीय वीर्य को नहीं जानते हैं, अपनी शक्ति का अनुभव नहीं कर रहे हैं।
"जिन जीवों ने महान् योग के द्वारा कर्मों का नाश किया है, वे सदा के लिए सिद्धों के अनन्त निर्विकल्प चतुष्टय रूपी अमृत नदी के स्वामी क्यों नहीं होंगे अवश्य ही होंगे, अर्थात् जिन्होंने योग के द्वारा, समाधि के द्वारा सम्पूर्ण कर्मों का नाश कर दिया है वे निश्चय से एक साथ तीन लोक को जानते-देखते हैं और अनन्त ज्ञानादिक अनन्त चतुष्टय भोक्ता बनते हैं । "