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बाहुबली की यह घटना जैन समाज में जानी-पहचानी है। किन्तु इस घटना का मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से विश्लेषण कभी नहीं हो पाया। उन्हीं गोम्मटेश्वर बाहुबली की 57 फुट उत्तुंग विशाल आकार की एक अद्भुत लावण्यमयी मूर्ति श्रवणबेलगोल में विगत 1000 वर्षों से विराजमान है। उस मूर्ति के कारण ही यह स्थान जगद्विख्यात तीर्थ और लक्ष-लक्ष जनों की श्रद्धा का केन्द्र पावन तीर्थ बन गया है। किन्तु इस प्रस्तर मूर्ति और क्षेत्र का पुरातात्त्विक, कलात्मक, ऐतिहासिक, एवं सांस्कृतिक दृष्टिकोण से कभी विश्लेषण नहीं किया गया।
धर्मानुगामी श्री लक्ष्मीचन्द्रजी साहित्य-जगत् में सुपरिचित हैं। लेखनी पर उनको अधिकार प्राप्त है। उनके लिखने की शैली कथ्य के रहस्य की परतें उतारती हुई प्रतीत होती है। उनकी शब्द-संयोजना में कला परिलक्षित होती है । सन् 1981 में होने वाले गोम्मटेश्वर बाहुबली के सहस्राब्द महामहोत्सव के उपलक्ष्य में श्री लक्ष्मीचन्द्र ने प्रस्तुत अनुसन्धानपूर्ण पुस्तक 'अन्तर्द्वन्द्वों के पार : गोम्मटेश्वर बाहुबली' अत्यन्त रोचक और विश्लेषणात्मक शैली में लिखी है। इससे मूर्ति और क्षेत्र दोनों के सम्बन्ध में अनेक नवीन ज्ञातव्य रहस्यों पर प्रकाश पड़ा है। इस कृति के लिए विद्वान् लेखक साधुवादाह हैं।
शुभाशीर्वाद।
अजमेर 10-4-79