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अन्तर्द्वन्द्रों के पार भद्रबाहु ने सबको धर्मलाभ दिया (52)। सम्राट चन्द्रगुप्त और महारानी ने मुनिसंघ से आहार ग्रहण करने के लिए निवेदन किया (53)। चन्द्रगुप्त ने राजपुरुषों को साथ ले मुनियों को आहार दिया (54)। इसी अवसर पर वहां एक अन्य मुनिसंघ आ पहुँचा और दोनों संघों का मिलन हुआ (55)। सेवकों सहित चन्द्रगुप्त और सम्राज्ञी ने आचार्य भद्रबाहु के चरणों की अर्चना की (56) । सम्राट चन्द्रगुप्त भद्रबाहु की तपस्या और उनके ज्ञान से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने भद्रबाहु को अपना गुरु मान लिया। ____एक दिन आचार्य भद्रबाहु आहार के लिए निकले और जब एक भवन के द्वार में प्रवेश किया तो उन्होंने एक शिशु को चिल्लाते हुए सुना-"जाओ, जाओ"। आचार्य भद्रबाहु ने निमित्त-ज्ञान से विचार किया कि बालक की बात का अर्थ है कि उन्हें यह क्षेत्र छोड़ देना चाहिए। उन्होंने सोचा जब यह बालक बोल ही रहा • है तो उससे प्रश्न भी किया जा सकता है। प्रश्न का उत्तर मिला-बारह वर्ष, और आचार्य भद्रबाहु के निमित्त-ज्ञान में अर्थ स्पष्ट हुआ कि बारह वर्ष का भीषण अकाल पड़ने वाला है। वे निराहार लौट गये। ___ निमित्त-ज्ञान के इस निष्कर्ष के साथ जुड़ी है एक अन्य घटना जिसने भद्रबाहु के इस निर्णय की सम्पुष्टि दी। यह घटना भी पाषाण-फलकों में चन्द्रगुप्त बसदि में उत्तीर्ण है :
एक रात चन्द्रगुप्त वात-पित्त-कफ आदि रोगों से रहित स्वस्थ अवस्था में सोये हुए थे कि रात्रि के पिछले पहर में उन्होंने मोलह स्वप्न देखे । स्वप्नक्रम इस प्रकार है___1. सूर्यास्त, 2. कल्पवृक्ष की शाखा का टूटना, 3. चन्द्रमा का उदय जिसमें छलनी की तरह छेद थे, 4. भयंकर सर्प जिसके बारह फण थे, 5. देवताओं का विमान जो नीचे उतरकर वापस चला गया, 6. मलिन स्थान में उत्पन्न कमल, 7. भूतप्रेतों का नृत्य, 8. जुगनुओं का प्रकाश, 9. जलरहित सरोवर किन्तु कहींकहीं थोड़ा-सा जल, 10. सोने की थाली में खीर खाता हुआ कुत्ता, 11. ऊँचे हाथी पर बैठा बन्दर, 12. तट की मर्यादा भंग करता समुद्र, 13. रथ को खींचते हुए बछड़े, 14. ऊँट पर सवार राजपुत्र, 15. धूल से आच्छादित रत्नराशि और 16. काले हाथियों का युद्ध । (फलक 57)। ____इन सोलह स्वप्नों के अभिप्राय के सम्बन्ध में सम्राट चन्द्रगुप्त ने अपनी महारानी से, ज्योतिषियों और मंत्रियों से परामर्श किया (58) । अभिप्राय के सम्बन्ध में आश्वस्त होने के लिए वे आचार्य भद्रबाहु के पास गये (59) । स्वप्नों की बात सम्राट् के सेवकों को मालूम हुई। वे सम्राट के अश्व के पास बैठे उत्सुकता से प्रतीक्षा करने लगे (60)।
सम्राट चन्द्रगुप्त ने जाकर आचार्य भद्रबाहु को प्रणाम किया। अपने स्वप्न