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अन्तद्वन्द्रों के पार श्रुता : हाँ ठीक, भगवान् परम ऋषि गौतम गणधर के साक्षात् शिष्य लोहार्य
फिर जम्बु, फिर विष्णुदेव, फिर अपराजित आदि के नाम गुरु-शिष्यपरम्परा के क्रम से भद्रबाहु-स्वामी तक गिना दिये हैं और लिखा है कि यह गुरु-शिष्य परम्परा, सन्तान की तरह, इस नामावलि में सदा
युतिमान् है। अनुगा : भद्रबाहु स्वामी के नाम के साथ ही उस कथा का संदर्भ आ गया है
जिसे आपने पहले इसी शिलालेख से पढ़कर बताया कि भद्रबाहु स्वामी ने अष्टांग-निमित्तज्ञान से जाना कि उत्तराखंड में बारह वर्ष का
अकाल पड़ने वाला है आदि। पुराविद् : यह यहाँ का प्राचीनतम शिलालेख है-छठी शताब्दी का। और, है
___ सबसे महत्वपूर्ण । 'शिलालेख संग्रह' में इसका पहला क्रमांक है। अनुगा : मेरा सौभाग्य है कि आप सबकी कृपा से अब मैं यह समूचा शिलालेख
पढ़ सकती हूँ। इसका पूरा अर्थ भी स्पष्ट हो गया है। वाग्मी : स्वयं चन्द्रगुप्त मौर्य का इतिहास-काल, भद्रबाहु स्वामी को दक्षिण
यात्रा, श्रवणबेलगोल की पावन भूमि की प्राचीनता, भद्रबाहु स्वामी की तपस्या और समाधिमरण की पुण्य-स्थली, और 700 मुनियों के
समाधिमरण का स्मारक यह तीर्थ! पुराविद् : और, प्रकृति का हृदयग्राही वर्णन, काव्य का चमत्कार, भाषा का
प्रवाह... . भुतज्ञ : और, महत्वपूर्ण बात यह कि उत्तर और दक्षिण भारत को संस्कृति के
एक सूत्र में गूंथने वाली ऐतिहासिक कथा का जीवन्त प्रमाण । अनुगा : शिलालेख के अन्त में लिखा है जिसे मैं भी पढ़ सकती हूँ
"जयतु जिनशासनम् इति ।"