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अन्तर्द्वन्द्वों के पार
चाणक्य को अपनी बुद्धि पर विश्वास था। उसने गृहपति को आश्वस्त कर दिया कि वह उसकी पुत्री को अवश्य चन्द्रमा का पान करवा देगा। "शर्त यह है" चाणक्य ने कहा, "जो बालक उत्पन्न हो उसकी शिक्षा-दीक्षा और उसके भविष्य के निर्माण का दायित्व मेरे ऊपर ही रहेगा। मैं जब चाहूँ, बालक को इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए साथ ले जाऊँगा।" ___गण के मयूरों के रक्षक मौर्य गृहपति ने चाणक्य की यह शत मान ली। उसने सोचा, जो व्यक्ति इतना कुशल है कि मेरी पुत्री को चन्द्रमा पिला देगा वह मेरे बालक के भविष्य को भी सुन्दर बनायेगा।
चतुर चाणक्य ने भी यह सोचा कि दोहद पूरा होने से पहले ही यदि प्रतिज्ञा करवा लूंगा तो गृहपति वचनबद्ध हो जायेंगे। बाद में ऐसी बात स मने रखूगा तो वह धन-सम्पदा देने का विकल्प सामने रखेंगे और इच्छित उद्देश्य पूरा न हो पायेगा।
चाणक्य को ज्ञान हो गया कि जो श्रेष्ठी-पुत्री चन्द्रमा को पीने का दोहद पाल रही है, उसके गर्भ का बालक अवश्य ही प्रतापी होगा, और वही उसकी आशाओं के अनुरूप राजा बन सकेगा। ___चन्द्रोदय होते ही चाणक्य ने गृहपति की गर्भवती पुत्री को छप्पर वाले कमरे में आराम से पीढ़े पर बैठ जाने को कहा। हाथ में जल से भरी थाली दे दी और कहा कि फूस की छत वाले झरोखे से जो चन्द्रमा दिखाई देता है वह जैसे-जैसे थाली में आता जाये भगवान का नाम-स्मरण करती हुई वह चन्द्रमा को थाली में से धीरे-धीरे पीती रहे। जब समूचा चन्द्रमा पी चुके तो आँख बन्द करके लेट जाय। मन को बहुत प्रफुल्ल और प्रसन्न रखे । उसे अनुभव होगा कि चन्द्रमा की शीतलता पेट में हिलोरें ले रही है। ___ चाणक्य ने अपनी वाणी की चतुराई से और आशीर्वाद की मुद्रा से गांव के एक आदमी को अपने साथ मिला लिया था। उसे आदेश दे दिया था कि वह फूस की छत पर दबे पांव चढ़ जाये और छत पर जो झरोखा बना हुआ है, जिसमें से चन्द्रमा की किरणें नीचे घर में पड़ रही हैं, उस झरोखे को धीरे-धीरे फूस से इस तरह ढकता जाये कि चन्द्रमा का प्रकाश नीचे कमरे में क्रमशः कम होता जाये। यह ध्यान रखे कि नीचे रहने वालों को न तो हाथ की उंगलियां दिखाई दें, न कोई शब्द सुनाई दे।
स्पष्ट है कि जब उल्लास से भरी हुई गर्भवती नारी ने यह पाया कि धीरेधीरे जल में लहराते चन्द्रमा का बिम्ब कम होता जा रहा है और वह उतने-उतने अंश को पीती जा रही है तो उसे तृप्ति होती गई। धीरे-धीरे चन्द्रमा इतना कम हो गया कि उसका प्रकाश समाप्त हो गया और वह नारी अपार शीतल मधुरिमा की अनुभूति से भरी पलंग पर लेट गई और कुछ ही क्षणों में निद्रालोक में चली गई।
चाणक्य का साथी विदा हो गया था। चाणक्य पूरे भरोसे के साथ स्वयं भी