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अन्तर्द्वन्द्वों के पार
भरत ने अपने पुत्र अर्ककीर्ति को राज्य-भार सौंपा, स्वयं मुनिव्रत धारण किया, संयम-साधना की अपूर्व क्षमता फलवती हुई कि उन्हें उसी समय मन:पर्ययज्ञान हो गया-प्राणियों की मनोभावनाओं और विचारों का प्रत्यक्ष दर्शन । फिर केवलज्ञान का सूर्य उदय हुआ और महामुनि भरत देश-देशान्तर में जीवों को कल्याणकारी धर्म का उपदेश देने के लिए विहार करने लगे। अन्त में, योगी भरत ने कर्मों का उच्छेद किया और वह मोक्ष की अवस्था में अविनश्वर आत्मधाम में स्थित हो गये।