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दव
क्रमांक आचार्य-नाम गुरु-नाम लेख ऋ० शक संवत् विशेष विवरण 44 गोपनन्दि पण्डित चतुर्मुखदेव 565 अ० 1015 मू० दे० पू० । पोय्सलनरेश त्रिभुवनमल्ल एरेयङ्ग ने बसदियों के
जीर्णोद्धार के हेतु ग्राम का दान किया। गोपनन्दि ने क्षीण होते हुए जैनधर्म का गङ्ग-नरेशों की सहायता से पुनरुद्धार किया। वे
षड्दर्शन के ज्ञाता थे। देवेन्द्रसिद्धान्तदेव - 565 " मू० दे० पु० । उपर्युक्त नरेश के गुरुओं में से थे। ___अकलङ्क पण्डित
46 अ० 1020 सातनन्दि देव
- 152
चरणचिह्न हैं। चन्द्रकीत्तिदेव
153 " ", अभयनन्दिपण्डित - 51 अ० 1022 एक शिष्य ने देववन्दना की। शुभचन्द्रसि०देव कु०मलधारि 155 1037 मू० दे० पु०। ये पोय्सल नरेश विष्णुवर्द्धन के मंत्री गंगराज दण्ड
देव 82 1039 नायक और उनके कुटुम्ब के गुरु थे। इन्होंने उक्त कुटुम्ब के सदस्यों 154
से कितने ही जिनालय निर्माण कराये, जीर्णोद्धार कराया, मूर्तियां 160
1040 प्रतिष्ठित कराई और कितनों ही को दीक्षा, संन्यास आदि दिये।
80
503
... - अन्तर्द्वन्द्रों के पार
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अ० 1041
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550)