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महामस्तकाभिषेक
वीरश्रेष्ठ चामुण्डराय ने जब दसवीं शताब्दी में गोम्मटेश्वर की मूर्ति की प्रतिष्ठापना सिद्धान्तचक्रवर्ती नेमिचन्द्र आचार्य के अनुष्ठान-संचालन में की तो उस भव्य दृश्य को जनता ने सदा के लिए हृदय में अंकित कर लिया। अवश्य ही, महामस्तकाभिषेक की परम्परा, बाद में, निश्चित विधि-विधान और मुहूर्त-शोधन द्वारा इंगित काल-अवधि के अन्तर्गत सम्पन्न होनी प्रारम्भ हुई होगी। तदुपरान्त प्रत्येक बारहवें वर्ष महामस्तकाभिषेक का अनुष्ठान, क्षेत्र के प्रथम धर्माचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती के शिष्य-प्रशिष्य नियोजित करवाते रहे, यह स्पष्ट प्रतीत होता है । मैसूर राज्य के नरेशों ने जनता के इस धार्मिक उल्लास में सम्मिलित होकर अपने को कृतार्थ अनुभव किया। क्षेत्र के धर्माचार्य, राज्य के नरेश और जनता के सामूहिक धार्मिक उल्लास ने, जिनकी प्रतिनिधि महिमामयी गुल्लिकाअज्जी रही आयी, देश के इस अद्भुत सांस्कृतिक तीर्थ को नये आयाम दिये। __शिलालेख क्रमांक 360 के अनुसार सन् 1398 में पण्डिताचार्य के निर्देशन में जो महामस्तकाभिषेक हुआ, उसमें उल्लेख है कि उससे पहले सात महामस्तकाभिषेक हो चुके थे। ___ यदि महामस्तकाभिषेक बारह वर्ष के अन्तराल से होने की परिपाटी बन गई थी, तो मानना चाहिये कि सन् 1314 में एक महामस्तकाभिषेक हुआ होगा।
सन 1612 के अभिषेक का उल्लेख कवि पंचबाण ने किया है। यह अभिषेक धर्माध्यक्ष श्री शान्तिवर्णी द्वारा निष्पन्न हुआ था।
इसके बाद के महामस्तकाभिषेकों की सम्पन्नता जिन मैसूर-नरेशों के द्वारा सन् !605, 1659, 1677, 1800, 1825 में हुई, उनका उल्लेख क्रमशः इस प्रकार मिलता है—चिक्क देवराज वडीयर, दोड्ड देवराज वडीयर, इनके मन्त्री विशालाक्ष, मुम्मडि कृष्णराज वडीयर और कृष्णराज वडीयर (तृतीय)।
सन 1827 के अभिषेक का वर्णन एक शिलालेख में है । सन् 1879 के महाभिषेक का वर्णन 'इन्डियन एन्टीक्वेरी' में है, जब मूर्ति का नाप लिया गया था।