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अन्तर्दन्द्रों के पार विरल हैं। किन्तु शोध-खोज के उपरान्त उत्तर भारत में उल्लेखनीय अनेक बाहुबली-मूर्तियों के अस्तित्त्व का पता लगा है जिनका विवरण निम्नप्रकार है____ जूनागढ़ संग्रहालय में प्रदर्शित नौंवीं शताब्दी की मूर्ति जो प्रभासपाटन से प्राप्त हुई है। __ खजुराहो में पार्श्वनाथ मन्दिर की बाहरी दक्षिणी दीवार पर उत्कीर्ण दसवीं शताब्दी की मूर्ति।
लखनऊ संग्रहालय की दसवीं शताब्दी की बाहुबली-मूर्ति जिसका मस्तक और चरण खडित हैं।
देवगढ़ में प्राप्त मूर्ति, दसवीं शताब्दी की, जो अभी वहीं के 'साहू जैन संग्रहालय' में प्रदर्शित है। इस मूर्ति का चित्र जर्मन पुरातत्त्व-वेत्ता क्लोस ब्रून ने अपनी पुस्तक में दिया है । देवगढ़ में बाहुबली की 6 मूर्तियां प्राप्त हैं।
बिलहरी, जिला जबलपुर, मध्यप्रदेश से एक शिलापट प्राप्त हुआ है जिस पर बाहुबली की प्रतिमा उत्कीर्ण है।
सवीं शताब्दी की नयी मूर्तियों में, जिन्हें ऊँचे माप पर बनाया गया है, आरा (बिहार) के जैन बालाश्रम में स्थापित मूर्ति, उत्तरप्रदेश के फिरोजाबाद नगर में कुछ वर्ष पूर्व स्थापित विशाल बाहुबली-मूर्ति और सागर, म०प्र० के वर्णी भवन में स्थापित मूर्ति उल्लेखनीय हैं।
उत्तर भारत के अन्य मन्दिरों में भी ब्रोन्ज और पीतल की अनेक बाहुबली मूर्तियां विराजमान हैं।
कतिपय त्रिमूर्तियाँ ___ बाहुबली को भरत चक्रवर्ती के साथ ऋषभनाथ की परिकर-मूर्तियों के रूप में भी प्रस्तुत किया गया है। बाएँ लता-वेष्टित बाहुबली की और दाएँ नव-निधि से अभिज्ञात भरत की मूर्ति से समन्वित ऋषभनाथ की जटा-मण्डित मूर्तियाँ भव्य बन पड़ी हैं। ऐसे अनेक मूत्यंकन देखे गये हैं--
जबलपुर जिले में बिलहरी ग्राम के बाहर स्थित कलचुरिकालीन, लगभग नौवीं शती, जैन मन्दिर के प्रवेश द्वार के सिरदल पर इस प्रकार का सम्भवतः प्रचीनतम मूत्यंकन है। . ___ उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले में स्थित देवगढ़ के पर्वत पर एक मन्दिर में जो ऐसा मूयंकन है वह कला की दृष्टि से सुन्दरतम है और उसका निर्माण देवगढ़ की अधिकांश कलाकृतियों के साथ लगभग दसवीं शती में हुआ होगा। __खजुराहो के केन्द्रीय संग्रहालय में एक सिरदल (क्रमांक 1724) है । उस पर विभिन्न तीर्थंकरों के साथ भरत और बाहुबली के मूयंकन भी हैं । यह दसवीं शती की चन्देल कृति है।