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अन्तर्द्वन्द्वों के पार
कलचुरिनरेश के मन्त्री थे । बाद में उन्होंने होयसल नरेश बल्लाल द्वितीय (1173-1220 ) का आश्रय ले लिया था ।
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जिननाथपुर : अरेगल्लु बसदि
यह अरेगल्लु (चट्टान) पर स्थित है । शान्तिनाथ मन्दिर से भी यह पुराना है। इसमें तीर्थंकर पार्श्वनाथ की 5 फुट ऊँची पद्मासन मूर्ति है । सुखनासि में धरणेन्द्र पद्मावती के सुन्दर चित्र हैं । मूर्ति की पीठिका पर के लेख (क्र० 530 ) से ज्ञात होता है कि शक संवत् 1812 में इसे बेल्गुल के मुजबलेय्य ने प्रतिष्ठित कराया था । यहाँ की प्राचीन मूर्ति बहुत खण्डित हो गई थी जो आज भी पास के तालाब में पड़ी है। उसका छत्र मन्दिर के द्वार के पास रखा है । इस मन्दिर की अन्य मूर्तियां 24 तीर्थंकर, पंचपरमेष्ठी, नवदेवता, नन्दीश्वर आदि धातु-निर्मित हैं ।
समाधि मण्डप
यहाँ गाँव में एक समाधि-मण्डप है जिसे 'शिलाकूट' कहते हैं। यह 4X4 फुट का है। ऊँचाई 5 फुट है । ऊपर शिखर है । चारों ओर द्वारहीन दीवारें हैं। इसके लेख क्र० 539 से ज्ञात होता है कि यह बालचन देव के पुत्र ( मृत्यु : शक संवत् 1136 ) की निषद्या है । कालब्बे नामक एक साध्वी स्त्री द्वारा भी यहाँ सल्लेखना - विधि से शरीर त्याग किये जाने का उल्लेख है ।
ऐसा एक समाधि - मण्डप तावरेकेरे सरोवार के समीप भी है । लेख क्र० 497 के अनुसार यह चारुकीर्ति पण्डित की निषद्या है जिनकी मृत्यु शक संवत् 1565 में हुई।
जिननाथपुर में एक दानशाला भी थी जिसे लेख क्र० 71 के अनुसार देवकीर्ति पण्डित ( मृत्यु : शक संवत् 1085 ) ने इसे बनवाया था ।
हले बेलगोल
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यह श्रवणबेलगोल से 4 मील उत्तर की ओर है। यहां का जैन मन्दिर होयसल शिल्पकारी का नमूना है। यह अब ध्वंस अवस्था में है। गर्भगृह में ढाई फुट ऊँची खड्गासन मूर्ति है । सुखनासि में 5 फुट ऊँची सप्तफणी पार्श्वनाथ खण्डित मूर्ति है | नवरंग में अच्छी चित्रकारी है । बीच की छत पर देवियों सहित रथारूढ अष्टदिक्पालों के चित्र अंकित हैं । बीच में धरणेन्द्र का सप्तफणी चित्र है जिसके बायें हाथ में धनुष और दाहिने हाथ में सम्भवतः शंख है । द्वार पर आकर्षक कारीगरी हैं । इसके लेख ( ० 568) से ज्ञात होता है कि विष्णुवर्धन के पिता होयसल एरेयंग ने गुरु गोपनन्दि को बेल्गोल के मन्दिरों के जीर्णोद्धार के