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स्मारक चतुष्टय
श्रवणबेल्गोल के परिवेश में जो महत्त्वपूर्ण स्थान तथा मन्दिर और स्मारक हैं उनका विभाजन और वर्णन इन चार शीर्षकों के अन्तर्गत हो सकता है :
(1) चन्द्रगिरि पहाड़ी (2) विध्यगिरि पहाड़ी (3) नगर-स्मारक (4) आस-पास के ग्राम।
चारों स्थानों में अनेक बसदियां (मन्दिर) हैं, स्मारक हैं, शिलालेख हैं, भव्य मूर्तियाँ हैं और वे गुफाएँ-कन्दराएँ हैं जहाँ सहस्रों मुनियों ने तपस्या की, सल्लेखना या समाधिमरण किया और अपने संयम का प्रभाव एवं जन-कल्याण के लिए धर्मोपदेश तथा मोक्ष-साधना का प्रमाण प्रस्तुत किया। श्रवणबेल्गोल की ऐतिहासिक महत्ता विशेष रूप से इस तथ्य में भी है, जैसा कि हम पिछले अध्याय में देख चुके हैं, कि वहां के इन स्मारकों और शिलालेखों में गुम्फित हैं उन राजारानियों, मन्त्रियों, सेनापतियों, श्रेष्ठियों और भक्त-जनों के नाम, जिनका सम्बन्ध कर्नाटक-इतिहास के गंग, राष्ट्रकूट, चालुक्य और होयसल आदि राजवंशों से था। संयम, भक्ति और योगसाधना का तथा जैनधर्म के प्रवक्ता और साधक दिगम्बर जैन मुनियों का ऐसा जीवन्त एवं प्रामाणिक इतिहास अन्यन्न दुर्लभ है। यही कारण है कि श्रवणबेल्गोल को पवित्रता और सांस्कृतिक भव्यता के प्रतीक-रूप में 'जैन काशी' या 'जन बद्री' का नाम दिया गया है।
1. चन्द्रगिरि चन्द्रगिरि का प्राचीन नाम कटवप्र (संस्कृत) और कल्बप्पु (कन्नड़) है । लोकभाषा में उसे तीर्थगिरि और ऋषिगिरि भी कहते हैं।
चन्द्रगिरि समुद्र तल से 3053 फुट ऊँची है। नीचे के मैदान से यह मात्र