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________________ 22 शरावती - जो कुमार की आज्ञा (निकल जाती है) पवनंजय - मित्र, अधिक विलम्ब क्यों कर रहे हो (विद्या की भावना कर ) यह विमान आ गया । तो हम दोनों इस पर आरोहण करें । विदूषक - जो मित्र की आज्ञा ।। (दोनों चढ़कर विमान यान को देखते हैं) पवनंजय - (विमान के वेग को देखकर) कुटुम्ब का बच्चा यह चन्द्रमा आकाशजल रूप समुद्र के चाँदनी रूप जल में शीघ्र दौड़ता हुआ विमान रूपी जहाज पीछ दौड़ता हुआ सा प्रतीत ही रहा है।॥१५॥ विदूषक - तुम निश्चित रूप से पवनवेग हो । (सामने की ओर निर्देशकर) हे मित्र, यह रजतगिरि चन्द्रमा केवल रूप सादृश्य से जल सहित मेघ का आचरण करता हुआ श्रेणि रूप वन पंक्ति में विलीन दिखाई पड़ रहा है। पवनंजय - क्या चन्द्रमा गिर रहा है अथवा रजतगिरि पर ही चढ़ रहा है, यह विशद चाँदनी अब इस प्रकार मेरे मन में शंका उत्पन्न कर रही है ॥१६॥ विदूषक - हम लोग रजतगिरि को प्राप्त हो चुके हैं । यह विमान यहाँ स्थित है. तो उतरो | पवनंजय - जैसा आप कहें (उतरने का अभिनय करता है ) विदूषक - मित्र, यह उनकी चौशाला के मध्य में कौमुदीप्रासाद है, तो इसके भवनतले उतरें। पवनंजय - जैसा आप करें। (दोनों उतरते हैं) (अनन्तर विरहोत्कण्ठिता अंजना और उसके शीतल उपचार में व्यन वसम्तमाला प्रवेश करती है।) अंजना - (कामावस्था का नाट्य करती हुई, चांदनी के स्पर्श का अभिनय कर) - सरिख, इस चाँदनी को केले के पत्ते से रोको । वसन्तमाला - हूँ, यहाँ पर क्या करें । यह दिन में भी चाँदनी के अङ्कर की आशङ्का करती हुई मृणालवलय से परिष्कृत होकर काँपती है । चन्द्रमा के बिम्ब की शंका कर मणिदर्पण नहीं देखती है । मलयवायु की आशंका करतो हुई केले के पत्ते की वायु का निवारण करती है। कामदेव के सैकड़ों बाणों की शंका करती हुई फूलों की शय्या को नहीं सहती है । चन्दन के द्रव को शंका करती हुई चन्द्रकान्तमणि के प्रवाह का परिहार करती है। (दोनों सुनते हैं) पवनंजय - निश्चिय रूप से इधर से वसन्तमाला बोल रही है । विदूषक - केवल वसन्तमाला ही नहीं है । तुम्हारे विरह से उत्कण्ठित वह भी इसी चन्द्रकान्त प्रासाद के द्वार पर विधमान है। अंजना - (बांयी आँख फड़कने की सूचना देकर) ओह यह बाई आंख फड़क रही
SR No.090049
Book TitleAnjana Pavananjaynatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimall Chakravarti Kavi, Rameshchandra Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size1 MB
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