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पवनंजय -
विदूषक -
18 है। आज इस एक दिन मुझ ब्राह्मण के ही भाग्य से दोनों पक्षों के सेनापतियों के द्वारा पारस्परिक सेना के विश्राम के लिए सौभाग्य से युद्ध कार्य रोक दिया है । इस प्रकार प्रभात से इतने समय तक चतुरङ्ग सेना के दर्शन के उत्सुक लेकर कसर न होने से भी कर रे प्रियर की सेवा नहीं की । इस समय सायंकालीन सन्ध्या के समुदाचार के लिए राजसभा से निकले हुए इस समय कहाँ है । (सामने देखकर) यह धनुष को धारण करने वाली शरावती है । तो इससे पूछता हूँ।(आकाश में) माननीया शरावति ! मित्र इस समय कहाँ है ? क्या कहते हो, सन्ध्या कार्य समाप्त करके, समस्त परिजनों को निषेध करके आर्य कुमुदती के तौर प्रदेश पर विद्यमान है। तो वहाँ जाता हूँ । (घूमता है ।) (अनन्तर पवनजये प्रवेश करता है) (देखकर) ओह सागर के परिसर प्रदेशों की सुख सेव्यता आश्चर्यजनक है । यहाँ पर निश्चय से - सेना के हाथी रुग्णचन्दन रसों का कुरला करते हुए नदी के तीर के पास धीरे-धीरे तमाल पल्लवों के समूह को तोड़ते हुए तत्क्षण युद्ध के परिश्रम के अपहरण से सैनिकों के द्वारा सम्मानित होकर सुखकर शोतले और सुगन्धित समुद्र तट के बन के छोरों की वायु का सेवन कर रहे हैं । ||1|| ये मित्र हैं । तो इनके समीप जाता हूँ (समीप जाकर) प्रिय मित्र की जय हो । मित्र कैसे ? हे मित्र, जिसमें चन्द्रमा का उदय निकटवर्ती है, ऐसे आकाश के भाग की दर्शनीयता को देखो। (देखकर) जिसका उदय समीपवर्ती है ऐसा चन्द्रमा की किरणों का समूह हठात् अन्धकार के मध्य प्रविष्ट होता हुआ, इस समय दर्शनीय है। जिसके अन्दर जल है, मरकतमर्माण की शिला के समान श्यामल जलराशि वाली मन्दाकिनी के समान चन्द्रकान्त भणि के द्रव का गौर प्रवाह है । ||2|| हे मित्र देखिए, यह विरही जनों के हृदय में स्नान करने से लगे हुए रुधिर से लाल कामदेव के भाले के समान, उत्कण्ठित कामिनीजन के हरिचन्दन से लिप्त ललारपट्ट के समान, चक्रवाकमिथुन के विरही मयूर के प्रथम शिखोदगम के समान, चकोरों के ज्योत्स्ना रूप आसव के पान हेतु रत्तमयो प्याले के सम्पन पूर्व दिशा रूपी वधू के मुख पर लगाए हुए तिलक के समान इस समय अर्थोदित चन्द्रमा विशेष रूप से शोभित हो रहा है । (देखकर) मारे गए शत्रु हाथी के मस्तक पर सरुधिर गुलाबी मस्तिष्क से युक्त बड़े हाथी के दन्ताग्न के समान चन्द्रमा का बिम्ब उदित हो रहा है । 1|3|| हे मित्र, हम दोनों एक साथ ही कुमुदती के तीर प्रदेशों में चाँदनी का सेवन करें।
पषनंजय - विदूषक -
पवनंजय -
विदूषक -
पवनंजय -
विदूषक -