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पवनंजय
अमात्य
पवनंजय
उपमास्य
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अमात्य
पवनजन्य
अमात्य इस प्रकार प्रान लिए
नगर की रक्षा के लिए कुमार को बुलाकर उन्हें यहाँ ही ठहराकर स्वयं प्रस्थान प्रारम्भ कर दिया है । पवनंजय ( हास्य पूर्वक) आर्य अस्थान में पिताजी का यह प्रस्थान का आरम्भ कहाँ.
से ?
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पवनंजय -
अमात्य विदुक्क
अमात्य
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अनन्तर
बहुत बड़ा संग्राम छिड़ने पर वरुण ने खर दूषण प्रभृति को पकड़ लिया।
P
अनन्तर
इस प्रकार के मानभङ्ग को धारण करते हुए दशमुख रावण ने खर दूषणादि को छुड़ाने के लिए दूत के मुख से महाराज से याचना की।
अनंतर ।
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जिसने बहुत बड़े हाथी के मस्तक तट को विदीर्ण किया है, उस हाथी से छूटे हुए मोतियों की पंक्ति से जिसके दांत रूपी भालों के छिद्र खुरदरे हो गए हैं ऐसा जो सिंह है, मान में महान् वह यह मृग के शिशु को मारने में लगा हुआ क्या प्रख्यात शौर्य के योग्य अपनी अन्य कीर्ति उत्पन्न कर रहा
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तो इतनी सी बात पर मेरा ही जाना पर्याप्त है ।
ने ठीक ही कहा है। क्योंकि -
कुमार
जिनका पराक्रम बुझा नहीं है ऐसे विद्या से विनीत आप जैसे पुत्रों के रहने पर यथायोग्य रूप से इच्छानुसार कार्यभार स्थापित किए हुए राजा लोग सुखी होते हैं | 1201
फिर भी बिना विचार किए हुए, क्षुद्र है, ऐसा मानकर वरुण की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए । निश्चित रूप से उसके -
आवास स्थान की महिमा का उल्लंघन समुद्र भी नहीं कर सकता। सौ पुत्र शत्रुराजाओं के समूह को पीसने में कुशल है। स्वयंसेवी विद्याधर राजाओं का समूह भी प्रतीहार स्थान की अभिलाषा करता हुआ प्रतिदिन (अपने कार्यों को) पूर्ण करता है । 211
इस प्रकार प्रतिपक्ष के ऐसे पराजित होने पर महाराज का बहुत बड़ा यश होगा | तो अत्यन्त आवेग से बस करो। महाराज कुमार के राजधानी में वापिस आने की इच्छा करते हैं।
(हंसकर) क्या यह आर्य को भी अनुमत है। तो शीघ्र ही देखिए क्रोष से पाताल तल से बलात् वेगपूर्वक निर्मूल उखाड़ी गई उस तालपुरी को मैं समुद्र के मध्य डाल दूंगा युद्ध में गाद रूप से छोड़े हुए, मिरते हुए बाणों के अग्रभाग से उगली हुई चिनगारियों वाली अग्नि की ज्वालाओं से ग्राम बनाए हुए शत्रुओं के लहू सूखें 12211
क्या यह कुमार के लिए बहुत भारी है ।
अमात्य ठीक कहा 1
क्या कुमार
मे
युद्ध
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की प्रतिज्ञा कर ली
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