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वसन्तमाला - राजकुमारी जल्दी करें । यह आर्या मिश्रकेशी बुला रही है । स्वामी, इस समय
हाथ छोड़ो । कल ही निश्चित रूप से ग्रहण करना । पचनजय - जैसा आप कहें (अभिलाषा पूर्वक छोड़ देता है) दोनों - राजकुमारी, इधर से घर से ।
सभी घूमकर निकल जाती है । पवनेजय - (उस मार्ग की ओर दृष्टिपात करता हुआ, उत्कण्ठा सहित) क्या बात है,
प्रिया के चले जाने पर भी प्रौढ स्मृति मानों साक्षात्कार कर रही है । क्योंकिमेरे द्वारा हाथ से पकड़ी जाने पर भी वह लम्जापूर्वक सखी जनों से मानों छिप रही है । कहीं जाने पर भी बहाने से विलम्ब करती हुई चञ्चल दृष्टि
को यानी हरती है | ||1|| विदूषक - मित्र, यह सूर्य आकाश के मध्य आरुद्ध हो गया और भोजन का समय चौत्त
रहा है, अतः हम भी चलते है। पवनंजय - जो आपको अच्छा लगे । ओह मध्याह्न हो गया है । इस समय निश्चित रूप
से - जलपक्षी तालाब के जल में ताप कोर कर किनारे के वृक्षों की छाया का आश्रय ले रहे हैं । मोर पंखों को सटाकर गाढ़ निद्रा पाकर उद्यान के वृक्षों की शाखा रूप निवासयष्टि का सेवन कर रहे हैं । ||2|| (परिक्रमा देकर दोनों चले जाते हैं) इस प्रकार हम्तिमरल रचित अंजना पाचनंजय नामक नाटक में पहला अङ्क समाप्त हुआ।
द्वितीय अङ्क
वसन्तमाली -
{अनन्तर वसन्तमाला प्रवेश करती है) ओह महाराज प्रह्लाद की राजधानी असाधारण रूप मे मुन्दर लग रही है। अधिक कहने से क्या विद्याधर लोग इस आदित्यपुर का आलंकारिक वर्णन कर रहे हैं कि अमरावती के सदश महेन्द्र की राजधानी को छोड़कर हम यहाँ पर सुख से रह रहे हैं । ओह, स्वामी के अन्युजन की उदारता, जिससे हम लोगों का भी राजकुमारी के मदृश आदर सत्कार हो रहा है । यह बात यहाँ रहे । यह बात विशेष रूप से आश्चर्य के योग्य है कि राजकुमारी के स्वयंवर के दिन इन दोनों का सुयोग्य मिलन है, इस प्रकार समल (दूषित अभिप्राय वाले) राजाओं ने प्रतिकूलता को छोड़कर स्वापो का और राजुकमारी का सत्कार किया है अधवा कौन स्वामी के प्रतिकूल हो सकता है। निश्चित रूप से कभी भी राजसिंह हाथी के बच्चों के द्वारा नियुक्त नहीं होता है । राजकुमारी सर्वथा महान् भाग्यशालिनी है । यहाँ पर अधिक क्या कहा जाय। स्वामी के साथ बहुत समय तक वृद्धि को प्राप्त होओ । (परिक्रमा देकर) इस समय स्वामी कहाँ है ? (सामने देखकर) ओह, क्या यह यहाँ मैते हैं? (अनन्तर बैठा हुआ विदूषक प्रवेश करता है)