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ॐनमः सिद्धेम्यो
श्री वीतरागाय नमः, सरस्वतीदेव्यं नमो नमः
परमवीतराग गुरुम्यो नमः सर्व कर्म निश्शेष कर, हुए निकल अविकार । नमो सिद्ध परमात्मा, पाऊँ अविचल थान ॥१॥ धर्म अहिंसा परम श्रुत, श्री अरिहंत महान । जिन शासन युत नमन है, करूं' अात्म रस पान ॥२॥ प्राचार्य प्रथम इस शतक के, आदिसागर जान । शिष्य उन्हीं के परमगुरु, महावीरकोति मुनिराय ॥३॥ विमलसिन्धु आचार्य गुरु, सन्मतिसिन्धु महान । इनके चरण सरोज में, करती सतत प्रणाम ॥४॥ 'विजय अहिंसा धर्म की,' होवे जग में सार । कथा मराठी प्राप्त कर, करती हूँ अनुवाद ॥५॥
"। अहिंसा की विजय ॥"
देवी का सन्देश-१ महाराजा पद्मनाभ अपने राजभवन में विराजमान हैं । प्राराम करने को वहाँ बैठे हैं। उनके हाथ में एक तोते का पिंजरा है । वह शुक पढ़ाया गया था। जो कुछ जैसा उसे शब्दोच्चारण सिखाया गया तदनुसार बोल-बोल कर राजा का मनोरञ्जन करता है। राजा उसके साथ खिलवाड़ करते हुए उसके पिंजरे में स्वयं अपने हाथ से अनार के दाने डाल रहे हैं।