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[ श्रहिंसा को विजय आज भी कोई एक तरह आने वाला है क्या ? इसी को सबको आतुरता लगी थी। आरती का घण्टानाद वन्द हुन । सबों ने पीछे मुड़कर देखा, तब तक एक घरमवीर "अहिंसा परमोधर्मः " गर्जना करता ग्रा धमका । महाद्वार पर अहिंसा की जय जय घोष सुनाई पड़ने लगी । पुरोहित के श्रन्यायवर्तन से उसका मन उत्राट उचाट हो रहा था । उसके हृदय में भी दयांकुर उत्पन्न हुआ था। वीर का आह्वान स्वरूप शान्त गर्जना सुनते लोगों का शरीर पुलकित हो गया। यही नहीं उसी के स्वरानुसार कितनों ने ही "अहिंसा धर्म की जय हो" यह जय-जयकार भी किया ।
उस तेजस्वी प्रभावी, तरुण ने बड़े उत्साह से अपना बोलना प्रारम्भ किया । "मेरे प्यारे धर्म ! याज की रात्रि प होते ही प्रातः सूर्योदय के साथ ही नूकपशुओं की वलिपूजा होने वाली है, अभी भी समय गया नहीं, अवसर है । इस अधर्म कृत्य को बन्द करने का प्रयत्न करो, निश्चय करो, देवी के नाम पर चलने वाली इस घोर हिंसा को रोकने पर ही आपका सही कल्याण होने वाला है । इसी मल्लिपुर नगर में आचार्य अमरकीति नाम के आचार्य महासाधु भी हिंसा के बन्द करने का प्रयत्न कर रहे हैं । यदि आपने पूर्णतः यह बलि प्रथा नहीं रोकी तो वे आमरणान्त उपवास करने वाले हैं | आप लोगों के हृदय में यदि दया का झरना फूट गया है तो हजारों मूक प्राणियों को जीवनदान प्राप्त होगा । प्राणदानं परमधर्म है न कि प्राणिघात | उन महापुरुष के प्रारण संशय में नहीं पड़े ऐसा यदि आपके मन में विचार है तो प्रातः बलि नहीं देना ऐसा निश्चय करो। आज पर्यन्त अज्ञान दश आपने विना विचारे यह कुकृत्य किया है तो आगे से अब सावधान हो कर दया धर्म का अवलम्बन लो । जहाँ दया नहीं, वहाँ धर्म ही कैसा ? और देवी ही कैसी ? अनेक जीवों का संहार करने वाली देवी-देवता द्वारा आपका कल्याण कभी भी होने वाला नहीं, इसलिए, आप यह हिंसा कभी मत करो"
उस तरुण के उपदेश ने सबका मन आकर्षित कर लिया। जाते-जाते भी अधिकांश लोग कह रहे थे 'दयाधर्म' यही सच्चा धर्म है । बहुतों को यही धर्म सच्चा प्रतीत होने लगा । सल्लीन होकर सब लोग उसका उपदेश सुन रहे थे। उतने ही में बड़े वेग से माणिकदेव उस तरुण पर दौड़कर आया | परन्तु लोगों ने मध्य में ही उसे दबा कर पकड़ लिया । श्रौर सब लोगों ने जोर से जयनाद किया " अहिंसा धर्म की जय" अहिंसा परमोधर्मः ।"
उस श्रहिंसानाद से आकाश भर गया। लोगों में जागृति हो जाने से