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हो रहा है जबकि चारों तरफ नरहिंसा का ताण्डव मचा हुआ है । स्वतन्त्र भारत में अब भी बलिप्रथा कई स्थानों में प्रचलित है । हिंसा का मूलकारण स्वहित या स्वार्थ है, यदि हम परहित के लिए कार्य करें दूसरे के दुःख को अपना दुःख माने तो हिंसा स्वयं समाप्त होती नजर आयेगी। पशुबलि प्रथा मांस भक्षियों द्वारा अपने स्वार्थ के लिए चलाई गई प्रथा है इसमें कोई धर्म नहीं होता, उससे किसी का कोई कल्याण संभव नहीं है इसका पूर्ण विश्लेषण इस कथा ग्रन्थ के माध्यम से सभी को अवगत होगा ।
समिति द्वारा प्रकाशित यह नवम् ग्रन्थ पाठकों को सौंपते हुए मुझे प्रत्यन्त प्रसन्नता है, अब तक के प्रकाशित ग्रन्थों की सभी प्राचार्य, विद्वान पण्डितों एवं जैन समाचार पत्रों ने भूरि भूरि प्रशंसा कर हमें इस कार्य - पथ पर निरन्तर बढने के लिए प्रोत्साहित किया है । अष्ठम ग्रन्थ "श्री सिद्धचक्र पूजातिशय प्राप्त श्रीपाल चरित्र" की जो समीक्षा हमें प्राप्त हुई वह अद्वितीय है । मैं उन सभी समीक्षकों का आभारी हूं जिन्होंने जैन साहित्य में प्रसार हेतु हमें प्रोत्साहित किया है।
प्रस्तुत ग्रन्थ के प्रकाशन में श्री दिगम्बर जैन समाज अकलूज ( महाराष्ट्र) का धन्यवाद करूंगा जिसने पूर्ण आर्थिक सहयोग प्रदान कर ग्रन्थ
का प्रकाशन कराया ।
ग्रन्थ में प्रकाशित सभी कथा चित्र एवं मुखपृष्ठ कथा पर आधारित काल्पनिक हैं, इन्हें आकर्षित रूप से बनाने के लिए चित्रकार श्री बी. एन. शुक्ला का भी आभार व्यक्त करता हूँ । ग्रन्थ की सुन्दर एवं शीघ्र छपाई के लिए प्रिंटिंग सेन्टर जयपुर के संचालक धन्यवाद के पात्र हैं।
ग्रन्थ प्रकाशन में समिति के सभी कार्यकर्ताओं विशेषकर श्री नाथूलालजी जैन प्रबन्ध सम्पादक, कु. विजया जंन का आभारी हूँ जिन्होंने ग्रन्थ प्रकाशन कार्य में हर प्रकार का सहयोग प्रदान किया ।
अन्त में में पाठकों से निवेदन करूंगा कि प्रूफरीडिंग में मैंने पूरी सावधानी रखी है फिर भो त्रुटियां रहना असम्भव नहीं कहा जा सकता अतः मेरा अनुरोध है कि त्रुटियों को शुद्ध कर कथा का आनन्द ले तथा प्रकाशन कार्य में रहीं त्रुटियां से हमें अवगत करायें ताकि भविष्य में उनका सुधार किया जा सके । पुनः लोक के समस्त पूज्य गुरुवर, प्राचार्यों, साबुनों एवं साध्वीयों 'के चरण कमलों में सहस्त्र बार नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु |
गुरुभक्त : महेन्द्रकुमार जैन "बडजात्या "
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