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अहिंसा की विजय |
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सुन कर उसके हृदय में अनेक प्रकार की भावनायें उथल-पुथल मचाने लगीं। हिमा की महिमा सुन कर उसने समझा कि मेरे पिता ने बड़ी भारी भूल की हैं। परन्तु इसके साथ ही माणिकदेव को अधिकारपूर्ण श्रायाज और देवो के कोप की भौति ने उसके मन को उद्विग्न कर दिया । उसका मन विचित्र प्रकार के उलझन में पडा जा रहा था। तो भी हिंसा कर्म से वह दहल रही थी ।
मुनि दर्शन को आने वाली यह कन्या कौन हो सकती है ? इसका उत्तर युवराज महेन्द्र ने तर्कण से समझ लिया था । इसी कारण से यह बार-बार उसकी ओर देखता था कि आचार्य श्री के धर्मोपदेश का प्रभाव उसके मन पर कितना और कैसा पड़ रहा है । परन्तु मल्लिपुर के हिंसा काण्ड का वर्णन ज्यों हो प्रारम्भ हुआ कि उसने अपना सिर नीचा कर लिया ओर एक बार भी ऊपर दृष्टि नहीं उठायो ।
महाराज श्री मो बहुत जोश में सिंह गर्जना कर रहे थे। हमारे उपदेश का प्रभाव लोगों पर बहुत अच्छा पड़ रहा है । यह जानकर उन्होंन अपनी आवाज एकदम धीमी करनी । गम्भीर मुद्राकर उन्होंने चारों ओर दृष्टि घुमायी । पुनः सावकाश, शान्तता से बोलने लगे । लोगों की उत्सुकता अत्यधिक रही थी। मात्रा श्र कहने लगे देखिये "अभी शीघ्र ही आश्विन शुक्ला प्रतिपदा से देवी का उत्सव प्रारम्भ होने वाला है, यह श्राप
लोगों को विदित हो है, यदि आपको दया-धर्म-अहिसा धर्म में रुचि है, उस पर आपको पूर्ण विश्वास है तो इस वर्ष देवी की बलि बन्द करना चाहिए | इतना बोल कर उन्होंने पुनः हर्षभरी दृष्टि चारों ओर फेंकी 1 सभा में से संकड़ों लोगों की अविचल स्वर में आवाज आयी" नहीं, हम लोग इस वर्ष देवी को बलि नहीं देने । "किसी प्रकार भी हिंसा नहीं करेंगे ।"
प्रफुल्ल मुखाब्ज महाराज पुनः बोलने लगे “आप बलि नहीं देंगे यह तो सही है, परन्तु बलि देनं वाले अन्य अज्ञानी प्राणियों को भी इस हिंसा कर्म से विमुख करना चाहिये । सर्वं सामान्य लोकों को बात क्या, किन्तु प्रत्यक्ष आपका राजा भी परावृत होना चाहिए, उसके मन को भी फेरने का प्रयत्न आप लोगों को अवश्य करना चाहिए। सबके मन पर अहिंसा का उपदेश विस्वरूप से मिलना चाहिए । प्रसंग प्रानं पर प्राणों की परवाह न करके इस कार्य को अखण्ड रूप से चलाने वाले वीरों का निर्माण होना चाहिए। हजारों निरपराध मूक प्राणियों को जावनदान देने के लिए, अपने