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अध्यात्म का रहस्य पाता है । अहिंसा व प्रेम का शासन ही अमर होता है। ज्ञानी की दृष्टि निराली होती है। क्षमा का प्रभुत्व और अलौकिक प्रतिभा का प्रकाश होता है। आचार्य श्री अमरकीतिजी का त्याग तपस्या और तत्वज्ञान बेजोड है। उनके अद्वितीय प्रभाव से १५ वर्षों का जमा हिंसाकाण्ड किस प्रकार धराशायी हो गया-यह अहिंसा धर्म का माहात्म्य है। इससे विदित होता है कि आग़ से प्राग नहीं बुझती, क्रोध से क्रोध नहीं मिटता, धूर्तता से धूर्तता नहीं नष्ट होती अपितु पानी से आग, क्षमा से कोप सरलता से कपट पर विजय प्राप्त होती है। इसी प्रकार धर्म से अधर्म का संहार होता है । तत्त्व का परिज्ञान अज्ञान का नाश करता है । तप और त्याग में अलौकिक शक्ति है । तप का तेज रवि किरणों की भाँति भक्तजनों के हृदयांगण में प्रसारित मिथ्या तिमिर को पल भर में छिन्न-भिन्न कर डालता है। इसका प्रमाण इस साधु चित्रण में पाठकों को स्वयं प्राप्त होगा। इसको मैंने मराठी पुस्तक "अहिंसा चा विजय" का अनुवाद किया है। मात्र भाषान्स है कि नह: । सेवा देश मात्र शनार्म का उद्घाटन करना है, उसमें इसे सहायक समझा और पाठकों के सामने उपस्थित किया ।
इसका प्रकाशन श्री दिगम्बर जैन विजया ग्रन्थ प्रकाशन समिति झोटवाडा जयपुर द्वारा हो रहा है । यह संस्था इसी प्रकार धर्मप्रचार और जिनागम का प्रसार करती रहे। इसके कार्यकर्ता, सम्पादक महोदय महेन्द्र कुमारजी बड़जात्या, नाथलालजी प्र. सम्पादक आदि सभी को हमारा पूर्य आशीर्वाद है कि वे इसी प्रकार जिनवाणी प्रचार कर ज्ञानगरिमा बढाते रहें। धनराशि देकर प्रकाशित कराने वाले भी सम्यग्ज्ञान प्राप्त करें।
प्रथम गणिनी १०५ प्रायिका विजयामती
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