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पितृ आज्ञा का उल्लंघन - ५
आ० महाराज श्री का चातुमसि सप्रभावना चल रहा या । मारिएकदेव पुरोहित के गुप्तचर भी चारों ओर भिन्न-भिन्न वेष बना धारण कर मल्लिपुर के चारों ओर सर्वत्र घूमते थे। महारानी और मृगावती के पहाड पर जाकर आने की बात भी उसे उसी दिन विदित हो गई थी। यही नहीं, दूसरे दिन से रानी आजारी बीमार हो गई और मृगावती केली ही सखी के साथ पहाड़ पर गई यह सब समाचार उसे मिल गया था । सन्धि का सहो उपयोग करना यह तो उस जैसे धूर्त का पहला काम था। यह कोई सहसा करने का काम नहीं था। वह तो एक महीना पहले ही महाराज को सूचना दे चुका था क्योंकि वह जानता था कि आचार्यजी के उपदेश का लोगो पर अवश्य प्रभाव होगा । इसलिये राजा को सावधान किया था। पुरोहित को आशा थी कि देवो का सन्देश पाकर राजा अवश्य जैनमुनि के प्रतिबन्ध का कोई उराय करेगा | उनका उपदेश नहीं होने देगा | उनके उपदेश सुनने वालों को कोई ताकोद, या धमकी देगा, उन्हें जाने से रोकेगा । कदाचित अपनी बेटी को जाते देखकर तो अवश्य ही बढ़ मुनि को नगर बाहर ही निकलवा देगा | मल्लिपुर कहीं उसे कोई स्थान नहीं दे ऐसा उपाय करेगा राजा । ऐसा विश्वास कर ही माणिकदेव पुरोहित बैठा था । परन्तु उसको सारी कामनाएँ निरर्थक हो गई। महीना, डंड माह् निकल गया परन्तु राजा ने इस विषय में कोई लक्ष्य नहीं दिया । इसके विपरीत मुनिराज के भक्तों की संख्या ही दिन पर दिन बढ रही थी । अत्र तो भीड़ का ठिकाना ही नहीं था। इतना ही नहीं पन्द्रह वर्षों से एक दिन भी नहीं जाने वाली रानी भी अपनी पुत्री को साथ ले जाकर दर्शन करने लगी। जिनदर्शन और मुनिदर्शन एवं उपदेश का प्रभाव देख माणिकदेव के प्रारण पखेरू उड़े जा रहे थे । बहु रात-दिन इसके विरुद्ध उपाय करने की धड़-पकड़ में लग रहा था । क्या करे क्या नहीं यहीं उसके विचार चल रहे थे ।
आज पुरोहित जी बहुत जोश में थे। सोचा राजा से जाकर मिलना चाहिए और उसे पूरी तरह भयभीत करना चाहिए। इसी अभिप्राय से यह