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## Adipurana
**Holding Fast to the Dharma 39.145**
**Question and Answer - The Twelve Angas - The Tenth Distinction 34.144**
**Peace - The Distinctions of the Garbhanvaya Kriya**
**38.57 Pratihariya - In the Arhant State**
The eight special events that occur when a Tirthankara appears: 1. Ashoka Tree, 2. Throne, 3. Three Umbrellas, 4. Bhamandala, 5. Divine Sound, 6. Flower Rain, 7. Sixty-four Chamaras, 8. Dundubhi Drum
**42.45 Prashan - A Distinction of the Garbhanvaya Kriya**
**38.55 Prasook - Inanimate 34.192**
**38.55 Priyodhbhav - A Distinction of the Garbhanvaya Kriya**
**38.55 Preeti - A Distinction of the Garbhanvaya Kriya**
**Enduring Adversity - There are 22 Distinctions:** 1. Hunger, 2. Thirst, 3. Cold, 4. Heat, 5. Bites of Insects, 6. Nakedness, 7. Dislike, 8. Women, 9. Walking, 10. Sitting, 11. Lying Down, 12. Anger, 13. Killing, 14. Begging, 15. Lack of Gain, 16. Illness, 17. Touch of Grass, 18. Excrement, 19. Respect and Rewards, 20. Knowledge, 21. Ignorance, 22. Invisibility 36.128
**47.22 Parnalavi - A Vidya, through whose influence a heavy body becomes light as a leaf and descends from the sky**
**34.188 Paksyanka - A type of Asana-Palki**
**37.73 Pandak - A treasure of the Chakravarti**
**38.37 Patradan - Giving donations to the Muni-Aryika, Shravak, Shravika, and other four Sanghas according to the rules**
**38.67 Parivrjaya - A Distinction of the Kanvaya Kriya**
**37.73 Ping - A treasure of the Chakravarti**
**38.64 Punyayajna - A Distinction of the Dikshanvaya Kriya**
**41.3 Purakalp - The Fifth Kalpa**
**37.73 Purodhas - The Chakravarti's Purohit Gem**
**38.64 Pujaradhya - A Distinction of the Dikshanvaya Kriya**
**39.52 Pratima Yoga Dharana - After the fast on a festival, staying naked like a statue in solitude at night and meditating**
**36.142 Pramod - A type of knowledge that arises from the mind with the help of the mind upon seeing virtuous people**
**36.147 Manahparyayajnan - The knowledge of knowing the objects present in another's mind. This knowledge is only possessed by the Muni**
**38.61 Mandarendra Abhishek - A Distinction of the Garbhanvaya Kriya**
**38.6 Mahamah - A special worship of the Bhagavan**
**37.73 Mahakala - A treasure of the Chakravarti**
**39.4 Mahavrat - Abandoning all sins like violence, etc. There are
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आदिपुराणम्
हर्ष धारण करना ३९।१४५ प्रश्नन्याकरण- द्वादशाङ्गका ___ दशवाँ भेद ३४।१४४ प्रशान्ति- गर्भान्वय क्रियाका भेद
३८५७ प्रातिहार्य- अरहन्त अवस्थामें
तीर्थकरके प्रकट होनेवाले आठ विशिष्ट कार्य - १ अशोक वृक्ष, २ सिंहासन, ३ छत्रत्रय, ४ भामण्डल, ५ दिव्यध्वनि, ६ पुष्पवृष्टि, ७ चौंसठ चमर, ८ दुन्दुभि
बाजा ४२।४५ प्राशन- गर्भान्वय क्रियाका एक
भेद ३८1५५ प्रासुक- निर्जीव ३४।१९२ प्रियोद्भव- गर्भान्वय क्रियाका
एक भेद ३८।५५ प्रीति- गर्भान्वय क्रियाका एक
भेद ३८।५५
विपत्तिको सहन करना। इसके २२ भेद हैं-१ क्षुधा, २ तृषा, ३ शीत, ४ उष्ण, ५ दंशमशक, ६ नाग्न्य, ७ अरति, ८ स्त्री, ९ चर्या, १० निषद्या, ११ शय्या, १२ आक्रोश, १३ वध, १४ याचना, १५ अलाभ, १६ रोग, १७ तृणस्पर्श, १८ मल, १९ सत्कार पुरस्कार, २० प्रज्ञा, २१ अज्ञान और
२२ अदर्शन, ३६।१२८ पर्णलवी- एक विद्या, जिसके
प्रभावसे भारी शरीर पत्तेके समान हलका होकर आकाशसे नीचे आ जाता
है ४७।२२ पक्ष्यङ्क- एक आसन-पालकी
३४.१८८ पाण्डक-चक्रवर्तीकी एक निधि
३७७३ पात्रदान-मुनि-आर्यिका, श्रावक
श्राविक आदि चतुःसंघको विधिपूर्वक दान देना
३८।३७ पारिव्रज्य- कन्वय क्रियाका
एक भेद ३८।६७ पिङ्ग-चक्रवर्तीकी एक निधि
३७१७३ पुण्ययज्ञ- दीक्षान्वय क्रियाका
एक भेद ३८।६४ पुराकल्प- पञ्चमकाल ४१।३ पुरोधस्- चक्रवर्तीका पुरोहित
रत्न ३७१८४ पूजाराध्य- दीक्षान्वय क्रियाका
एक भेद ३८।६४ प्रतिमा योग धारण- पर्वके उप
वासके बाद रातमें एकान्तमें प्रतिमाके समान नग्न रहकर ध्यान धारण करना ।
३९।५२ प्रमोद- गुणी मनुष्योंको देखकर
मनकी सहायतासे होनेवाला
एक ज्ञान ३६।१४२ मनःपर्ययज्ञान- दूसरेके मनमे
स्थित पदार्थको जाननेवाला ज्ञान । यह ज्ञान मुनिके ही
होता है ३६।१४७ मन्दरेन्द्राभिषेक- गर्भान्वय
क्रियाका एक भेद ३८।६१ महामह- भगवान्की एक विशिष्ट
पूजा ३८।६ महाकाल- चक्रवर्तीकी एक निधि
३७१७३ महाव्रत- हिंसादि पापोंका सर्व
देश त्याग करना । ये पाँच
हैं ३९।४ महाचैत्यद्रुम- समवसरणमें
विद्यमान चैत्यवृक्ष; इनके नीचे जिन-प्रतिमाएं विद्य
मान रहती हैं। ४१।२० माणव- चक्रवर्तीकी एक निधि
३७.७३ माध्यस्थ्य- विपरीत मनुष्योंपर
समभाव रखना ३९।१४५ मानस्तम्म-समवसरणकी चारों
दिशाओं में विद्यमान रत्नमय चार स्तम्भ इनके देखनेसे मानो जीवोंका मान नष्ट हो
जाता है । ४०।२० मार्दव-मानको जीतना
३६।१५७ मूलगुण- मुनियोंके मूलगुण २८
होते हैं -५ महाव्रत, ५ समिति, ५ इन्द्रिय दमन, ६ आवश्यक, ७ शेष सात
गुण ३६।१३५ मैत्री-किसी जीवको दुःख न हो
ऐसी भावना रखना
३९।१४६ मोद- गर्भान्वय क्रियाका एक भेद
३८।५५ मौनाध्ययन वृत्तत्व- गर्भान्वय
क्रियाका एक भेद ३८।५८
बलर्दि-ऋद्धि का एक भेद
३६।१५। बहिर्यान-गर्भावय क्रियाका एक
भेद ३८१५५ बोधि- सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान,
सम्यक् चारित्र ३९।८५-८६ ब्रह्मचर्य- आत्मस्वरूपमें लीन
रहना अथवा स्त्री मात्रका परित्याग करना ३६।१५८
मोगाङ्ग- चक्रवर्तीके भोगके दश
अङ्ग होते हैं-१ रत्न और निधियाँ, २ देवियाँ, ३ नगर, ४ शय्या, ५ आसन, ६ सेना, ७ नाट्यशाला, ८ वर्तन, ९ भोजन और १० वाहनसवारी ३७।१४३
मणि- चक्रवर्तीका एक निर्जीव
रत्न ३७१८४ मतिज्ञान- पाँच इन्द्रियों और